गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

घृतकुमारी (कुंवारपाठा) के फायदे

घृतकुमारी (कुंवारपाठा) के फायदे

यह सर्वाधिक पाया जाने वाला छोटा-सा मांसल पत्तियों वाला पौधा है, जो कि कई रोगों में अत्यंत उपयोगी है, इसके पत्तों के बीच का गूदा बाह्य उपयोग में त्वचा रोगों में काम आता है, स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता को खत्म करने में कारगर है, यकृत (लीवर), तिल्ली (स्पलीन) तथा पाचन संबंधी बीमारियों और आर्थराइटिस के इलाज में इसका खूब प्रयोग होता है, घृतकुमारी या एलोवेरा जिसे क्वारगंदल या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है, इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है, यह प्रजाति विश्व के अन्य स्थानों पर स्वाभाविक रूप से नहीं पाई जाती पर इसके निकट संबंधी अलो उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं, इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप में मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है, इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, इसके अतिरिक्त इसका उल्लेख न्यू टेस्टामेंट में किया है, लेकिन,यह स्पष्ट नहीं है कि बाइबल में वर्णित अलो और अलो वेरा में कोई संबंध है।

घृतकुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और वैकल्पिक औषधि उद्योग जैसे त्वचा को युवा रखने वाली क्रीम, आरोग्यी या सुखदायक के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन घृत कुमारी के औषधीय प्रयोजनों के प्रभावों की पुष्टि के लिए बहुत कम ही वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद है और अक्सर एक अध्ययन दूसरे अध्ययन की काट करता प्रतीत होता है, इस सबके बावजूद कुछ प्रारंभिक सबूत है, कि घृत कुमारी मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है, साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है, माना जाता है ये सकारात्मक प्रभाव इसमे उपस्थिति मन्नास, एंथ्राक्युईनोनेज़ और लिक्टिन जैसे यौगिकों के कारण होता है, इसके अलावा मानव कल्याण संस्थान के निदेशक और सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी डॉ.गंगासिंह चौहान ने काजरी के रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ.ए.पी. जैन के सहयोग से एलोविरा और मशरूम के कैप्सूल तैयार किए हैं, जो एड्स रोगियों के लिए बहुत लाभदायक हैं, यह रक्त शुद्धि भी करता है।

घृतकुमारी का वर्णन

घृतकुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है, जिसकी लम्बाई ६०-१०० सेंटीमीटर तक होती है, इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है, इसकी पत्तियां भालाकार, मोटी और मांसल होती हैं, जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों में पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं, पत्ती के किनारों पर सफेद छोटे दाँतों की एक पंक्ति होती है, गर्मी के मौसम में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।

माना जाता है कि घृत कुमारी मूलत: उत्तरी अफ्रीका का पौधा है और मुख्यत: अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया के साथ कैनेरी द्वीप और माडियरा द्वीपों से संबंधित है, हालाँकि अब इसे पूरे विश्व में उगाया जाता है, इस प्रजाति को चीन, भारत, पाकिस्तान और दक्षिणी यूरोप के विभिन्न भागों में सत्रहवीं शताब्दी में लाया गया था, इस प्रजाति को शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जैसे ऑस्ट्रेलिया, बारबाडोस, बेलीज़, नाइजीरिया, संयुक्त राज्य अमरीका और पैराग्वे में भी सफलता पूर्वक उगाया जाता है, विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

घृतकुमारी की खेती

आजकल घृतकुमारी की खेती एक बहुत बड़े स्तर पर एक सजावटी पौधे के रूप में की जा रही है, एलोवेरा को आधुनिक उत्पादक इसके औषधीय गुणों के कारण उगा रहे हैं, इसकी सरसता इसे कम वर्षा वाले प्राकृतिक क्षेत्रों में जीवित रहने में सक्षम बनाती है, जिसके चलते यह पठारी और शुष्क क्षेत्रों के किसानों में बहुत लोकप्रिय है, घृतकुमारी हिमपात और पाले का सामना करने में असमर्थ होता है, आमतौर पर यह कीटों का प्रतिरोध करने में सक्षम होता है, पर कुछ कीट जैसे मीली बग, पटरी कीट और एफिड कीड़ों के कारण पादप की वृद्धि में गिरावट आ सकती है, गमले में पौधों के लिए बालुई मिट्टी जिसमे पानी का निकास अच्छा हो तेज खिली धूप की स्थिति आदर्श होती है, आमतौर पर इन पौधो के लिए टैराकोटा के गमले क्योंकि यह छिद्रयुक्त होते हैं और अच्छी गुणवत्ता की खाद की सिफारिश की जाती है, सर्दियों के दौरान घृत कुमारी सुषुप्तावस्था में पहुँच जाती है और इस दौरान इसे बहुत कम नमी की आवश्यकता होती है, हिम या तुषार संभावित क्षेत्रों में पौधों को अन्दर या पौधाघर (ग्रीनहाउस) में रखना अच्छा रहता है, सौंदर्य प्रसाधन उद्योग के लिए एलोवेरा जैल की आपूर्ति के लिए घृत कुमारी का बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा, डोमिनिक गणराज्य, भारत, जमैका, दक्षिण अफ्रीका और केन्या के साथ संयुक्त राज्य अमरीका में भी होती है।

मानव उपयोग

घृतकुमारी के सौन्दर्य वर्धक और उपचारात्मक प्रभावों के संबंध में वैज्ञानिक साक्ष्य बहुत सीमित है और आम तौर पर विरोधाभासी है, इसके बावजूद सौन्दर्य और वैकल्पिक दवा उद्योग इसके चिकित्सीय गुणों का निरंतर दावा करता है, घृत कुमारी का स्वाद बहुत ही कड़वा होता है तथापि इसके जैल का प्रयोग व्यावसायिक रूप में उपलब्ध दही, पेय पदार्थों और कुछ मिठाइयों में एक घटक के रूप में किया जाता है, माना जाता है कि घृत कुमारी के बीजो से जैव इंधन प्राप्त किया जा सकता है, भेड़ के कृत्रिम गर्भाधान में वीर्य को पतला करने के लिए घृतकुमारी का प्रयोग होता है, ताजा भोजन के संरक्षक के रूप में और छोटे खेतों में जल संरक्षण के उपयोग में भी आता है।

चिकित्सा

चीन, जापान और भारत में घृतकुमारी का प्रयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है, व्यापक मान्यता के विपरीत कि घृत कुमारी विषैली नहीं होती, अगर इसको ज्यादा मात्रा में निगला जाए तो यह हानिकारक हो सकता है, मान्यता है कि घावों के भरने में घृतकुमारी प्रभावी इलाज है, पर साक्ष्य सीमित और विरोधाभासी हैं, जलने और घाव पर लगाने के अलावा घृतकुमारी के सेवन से मधुमेह रोगियों की रक्त शर्करा के स्तर में सुधार होता है, साथ ही यह उच्च लिपिडेमिक रोगियों के रक्त में लिपिड का स्तर घटाता है।

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