गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

निर्मली के फायदे | nirmali ke fayde

निर्मली के फायदे

आप सभी ने निर्मली वृक्ष का नाम बहुत बार सुना होगा, प्रायः निर्मली के बीज को पंसारी के दुकानों पर देखा होगा, कई स्थानों पर निर्मली के वृक्ष या फल का उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है, वहीं कुछ लोग निर्मली के बीजों का प्रयोग पानी को साफ करने के लिए भी करते हैं, ऐसा भी देखा गया है कि निर्मली की लकड़ियों को जलाकर लोग अपने घरों को शुद्ध करने की कोशिश करते हैं, आमतौर पर लोग निर्मली का प्रयोग इन्हीं कामों के लिए करते हैं, लेकिन निर्मली के उपयोग से संबंधित सच सिर्फ इतना ही नहीं है।

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आयुर्वेदिक ग्रंथों में निर्मली के प्रयोग से जुड़ी कई बेहतरीन बातें बताई गई हैं, इनमें आपके लिए सबसे काम की बात यह है, कि निर्मली कई रोगों के इलाज में फायदेमंद है, निर्मली का प्रयोग अत्यधिक प्यास लगने की समस्या, आंखों की बीमारी, मूत्र रोग में फायदेमंद होता है, निर्मली पेट में कीड़े होने पर, पेट में दर्द होने पर, पथरी की समस्या हो या सर्दी-जुकाम की परेशानी, सभी में निर्मली बहुत फायदेमंद होता है।

इसके अलावा आप निर्मली का इस्तेमाल पीलिया, सिर से जुड़ी बीमारियां, एनीमिया, रक्तस्राव और जहर उतारने के लिए भी कर सकते हैं, इतना ही नहीं निर्मली उल्टी, डायबिटीज, वात दोष, सूजन, घाव या कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है, आइए जानते हैं कि इतने महत्वपूर्ण वृक्ष निर्मली के फायदे और क्या-क्या हैं।

निर्मली क्या है ? 

आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों से निर्मली के बारे में जानकारी मिलती है, इसका वृक्ष लगभग 12 मीटर ऊँचा तथा कुचले के जैसा होता है, बहुत पुराने समय से पानी को साफ करने के लिए निर्मली के बीजों का प्रयोग किया जा रहा है, जल से भरे हुए बर्तन में निर्मली को थोड़ा घिसकर डालने से जल की पूरी गन्दगी नीचे बैठ जाती है, जिससे जल निर्मल या स्वच्छ हो जाता है, इसलिए इसे निर्मली कहते हैं, निर्मली पाउडर का इस्तेमाल कई रोगों के इलाज में किया जाता है।

अनेक भाषाओं में निर्मली के नाम 

निर्मली का वानस्पतिक नाम स्ट्रिक्नॉस पोटेटोरम है और यह लौगेनिएसी कुल का है, निर्मली को देश या विदेश में अन्य कई नामों से भी जाना जाता है, जो ये हैं :-

  • Hindi - निर्मली, निर्मल
  • English - वॉटर फिल्टर ट्री, कटक नट्स, ब्लैक बिटर बैरी, क्लीएरिंग नट ट्री
  • Sanskrit - पयप्रसादी, अम्बुप्रसादी, कतक, निर्मली, चक्षुष्या
  • Urdu - निर्मली 
  • Oriya - कोटकू 
  • Kannada - चिल्लिकायि, कतकम् 
  • Gujarati - निर्मली, कतकडो 
  • Tamil - तेतन, कोट्टाई 
  • Telugu - कतकमु, अण्डुगु 
  • Bengali - निर्मली 
  • Nepali - दमाई फल 
  • Marathi - चिलबिंग, चिल्हारा 
  • Malayalam - कटकम 
  • Arabic - निर्मली 
  • Persian - निर्मली। 

निर्मली के औषधीय गुण 

निर्मली के औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैं :-

निर्मली आंखों की बीमारी में लाभदायक है 

सिर्फ सेंधा नमक के साथ अथवा सेंधा नमक तथा मधु के साथ निर्मली बीज का काजल बनाकर आँखों में लगाएं, इससे आंखों के अर्जुनरोग में लाभ होता है।

निर्मली फल अथवा बीजों को मधु के साथ पीस लें, इसमें थोड़ा-सा कर्पूर मिलाकर नियमित काजल की तरह लगाने से आंखों के विकार में लाभ होता है और आंखों की रोशनी बढ़ती है, इससे आंखों में होने वाला दर्द ठीक होता है।

लालचंदन, पिप्पली, हल्दी तथा निर्मली बीज को जल में पीसकर बत्ती बना लें, इस बत्ती को घिसकर काजल की तरह लगाने से सभी प्रकार के आंखों के रोग में लाभ होता है।

निर्मली के बीज को पानी में पीसकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिला लें, इसे आँखों के बाहर लगाने से आंखों के दर्द और आंखों की जलन की समस्या में लाभ होता है।

निर्मली खांसी के इलाज में लाभदायक है 

1 निर्मली के फल का गूदा निकालकर उसमें शहद मिलाकर चटाने से सूखी खांसी मिटती है।

निर्मली हैजा में फायदेमंद है 

निर्मली की छाल का चूर्ण बनाकर उसमें निंबू का रस मिला लें, 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से दस्त और (हैजा) ठीक होता है।

निर्मली पेट के रोग में लाभदायक है 

निर्मली के बीजों को पानी में पीसकर नाभि के आस-पास लेप करें, इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं।

निर्मली दस्त की समस्या ठीक करता है 

निर्मली के 1 बीज को पीसकर, छाछ में मिला लें, इसे 5 दिनों तक पिलाने से दस्त की समस्या में लाभ होता है।

निर्मली खूनी बवासीर का इलाज करता है 

निर्मली के बीज को जलाकर, उसकी भस्म बना लें, 25 मिग्रा भस्म में थोड़ी सी शर्करा मिलाकर खाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।

निर्मली मूत्र रोग (पेशाब संबंधित बीमारी) में फायदेमंद है 

निर्मली का उपयोग मूत्र सबंधी विकारों में भी किया जा सकता है, क्योंकि इसमें मूत्रल यानि डायूरेटिक गुण पाया जाता है, इससे मूत्र का प्रवाह बढ़ता है और मूत्र संबंधी रोगों में लाभ मिलता है, आइये जानते हैं कि मूत्र संबंधी रोगों में निर्मली का सेवन कैसे करें :- 

निर्मली, गम्भारी आदि द्रव्यों को घी में पका लें और 5 ग्राम घी का सेवन करने से पेशाब में खून आने की बीमारी में लाभ होता है।

निर्मली के 1 बीज को पीसकर दूध के साथ खाने से रुक-रुक कर पेसाब आने की समस्या ठीक होती है।

निर्मली के 2 बीजों को पानी में पीसकर, दही मिला लें, इसे चीनी मिट्टी के बर्तन में रखकर रात भर पड़ा रहने दें, सुबह इसे निकालकर सेवन कर लें, इस प्रकार सात दिनों तक इसका सेवन करें, इस दौरान दही चावल खाने से सुजाक, पेशाब की जलन तथा पेशाब के साथ खून आना बन्द हो जाता है।

निर्मली डायबिटीज में लाभदायक है 

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार निर्मली में एंटी-डायबिटिक गुण पाया जाता है, जो की मधुमेह (डायबिटीज) के लक्षणों को कम करने में मदद करता है, इसके लिए 1 से 5 ग्राम निर्मली बीज को छाछ के साथ पीसकर, शहद मिला लें, इसका सेवन करने से सभी प्रकार के डायबिटीज में फायदा मिलता है।

निर्मली पथरी की समस्या में लाभदायक है 

पाषाणभेद तथा निर्मली फल आदि द्रव्यों का काढ़ा बना लें, 10 से 20 मिली काढ़ा का सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर बाहर निकल जाती है।

निर्मली सुजाक या गोनोरिया में फायदेमंद है 

1 से 2 निर्मली के बीजों को पीसकर चूर्ण बना लें और उसमें मिश्री मिला लें, इसे पिलाने से या 1 से 2 निर्मली बीजों को पीसकर दूध के साथ पीने से सूजाक में लाभ होता है।

निर्मली गठिया में लाभदायक है 

निर्मली की जड़ को तेल में डालकर पका लें, इसे छानकर मालिश करने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।

निर्मली घाव में लाभदायक है

निर्मली के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

निर्मली की जड़ को पीसकर लगाने से कुष्ठ और त्वचा रोगों में लाभ होता है।

निर्मली मिर्गी में फायदेमंद है 

निर्मली फल के रस को नाक के रास्ते देने और काजल की तरह लगाने तथा कान में देने से मिर्गी में लाभ होता है।

निर्मली कब्ज एवं वात-पित्त-कफ वाली बीमारियों में फायदेमंद है 

आयुर्वेद के अनुसार निर्मली वात-पित्त-कफ शामक होती है, इस वजह से यह तीनो दोषों के प्रकुपित होने से होने वाली बीमारियों के इलाज में सहायक है, जैसे कि अगर आप पेट की कब्ज से परेशान हैं, तो चिकित्सक की सलाह अनुसार निर्मली का उपयोग कर सकते हैं।

निर्मली बिच्छू के काटने पर फायदेमंद है 

निर्मली फल को घिस कर बिच्छू के काटने वाले स्थान पर लगाने से बिच्छू के डंक का दर्द, सूजन आदि प्रभाव ठीक हो जाते हैं।

निर्मली के उपयोगी भाग 

  • बीज 
  • जड़
  • फल। 

निर्मली का इस्तेमाल कैसे करें ? 

निर्मली चूर्ण - 1 से 3 ग्राम

उल्टी में - 6 ग्राम

काढ़़ा - 10 से 30 मिली

अधिक लाभ के लिए निर्मली का इस्तेमाल चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।

निर्मली कहां पाया या उगाया जाता है ? 

निर्मली का पेड़ भारत में कई स्थानों पर पाया जाता है, यह पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत के पर्णपाती वनों में 1200 मीटर की ऊँचाई तक, मध्य भारत, कोंकण एवं महाराष्ट्र में पाया जाता है।

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