गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

प्रियंगु के फायदे | priyangu ke fayde

प्रियंगु के फायदे

आयुर्वेद में सेहत का खजाना पाया जाता है, जिनमें प्रियंगु का नाम भी आता है, प्रियंगु को हिन्दी में बिरमोली, धयिया भी कहते हैं, प्रियंगु दाया में पौष्टिकता का गुण इतना होता है, कि वह आयुर्वेद में औषधि के रूप में काम करता है, प्रियंगु का औषधिपरक गुण पेट और त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज में आयुर्वेद में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

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प्रियंगु क्या है ? 

प्राचीन चरक, सुश्रुतादि संहिता काल से लेकर भावमिश्र के समय तक यह संदिग्ध नहीं थी, चरक के मूत्र विरेचनीय, पुरीषसंग्रहणीय, सन्धानीय, शोणित स्थापनीय गणों में तथा विभिन्न रोगों में पेस्ट, काढ़ा, आसव, तेल, घी कल्पों में इसकी योजना की गई है, सुश्रुत के प्रिंग्वादि, अंजनादि, एलादि गणों में तथा विभिन्न रोगों में यह कई कल्पों में प्रयुक्त हुई है, वाग्भट्ट के प्रियंग्वादि गणों में धन्वन्तरी निघण्टु के चन्दनादि वर्ग में कैयदेव निघण्टु के औषधीय वर्ग में तथा भाव प्रकाश के कर्पूरादि वर्ग में इसकी गणना की गई है |  

अन्य भाषाओं में प्रियंगु के नाम 

प्रियंगु का वानास्पतिक नाम कैलीकार्पा मैक्रोफिला है, इसका कुल वर्बीनेसी है और इसको अंग्रेजी में परफ्यूम्ड चेरी कहते हैं, चलिये अब जानते हैं कि प्रियंगु और किन-किन नामों से जाना जाता है। 

  • Sanskrit - वनिता, प्रियंगु, श्यामा, लता, गोवन्दनी, फलिनी, कान्ता, कृष्णपुष्पी, कृशाङ्गी, कारम्भा, प्रियक, गोवर्णी, भेदिनी, फलप्रिया, गौरी, वृत्ता, गौरवल्ली, शुभा, प्रेयसी, सुमङ्गा, मङ्गल्या, अङ्गनाप्रिया, प्रियवल्ली, नारिवल्लभी, वर्णभेदनी, सुभगा 
  • Hindi - प्रियंगु दाया, बिरमोली, धयिया 
  • Odia - प्रियन्गु  
  • Uttrakand - दैआ, दया, शिवाली  
  • Kannada - प्रियंगु 
  • Gujarati - घँऊला, प्रियंगु  
  • Tamil - नललु  
  • Telugu - प्रियंगु  
  • Bengali - मथारा  
  • Nepali - दयालो, श्वेतदयालो  
  • Punjabi - सुमाली, प्रियंगु  
  • Malayalam - नलल, चिमपोपिल  
  • Marathi - गौहल, गहुला
  • English - बिग लीफ ब्यूटी बेरी, ब्यूटी बेरी | 

प्रियंगु के औषधीय गुण 

प्रियंगु किन-किन बीमारियों के लिए औषधी के रूप में काम करता है, इसके बारे में जानने के लिए सबसे पहले औषधीय गुणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

  • प्रियंगु प्रकृति से तीखा, कड़वा, मधुर, शीत, लघु, रूखा, वातपित्त से आराम दिलाने वाला, चेहरे की त्वचा की रंगत को निखारने में मददगार, घाव को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।
  • यह उल्टी, जलन, पित्त के बढ़ने के कारण बुखार, रक्तदोष, रक्तातिसार, शरीर से बदबू आना, खुजली, मुँहासे, कोठ, रक्तपित्त, विष, जलन, तृष्णा या प्यास तथा गुल्म या ट्यूमर में लाभप्रद होता है।
  • इसके बीज मूत्र संबंधी रोग तथा आमाशयिक क्रिया विधि वर्धक होते हैं, इसकी जड़ आमाशयिक क्रिया विधि वर्धक होती है।

प्रियंगु के फायदे और उपयोग 

प्रियंगु कैसे और किन-किन बीमारियों के लिए इलाज के रूप में काम आता है, इसके बारे में जानने के लिए आगे पढ़ते हैं :-

प्रियंगु दांत संबंधी रोगो के इलाज में फायदेमंद है 

प्रियंगु का औषधि कारक गुण का फायदा पाने के लिए समान मात्रा में प्रियंगु, नागरमोथा तथा त्रिफला को पीसकर दांतों पर रगड़ने से शीताद रोग में लाभ मिलता है।

प्रियंगु रक्तातिसार में लाभकारी है 

अगर खान-पान में असंतुलन होने के कारण दस्त से खून निकल रहा है, तो प्रियंगु का इस तरह से इस्तेमाल करने पर जल्दी आराम मिलता है :-

  • शल्लकी, प्रियंगु, तिनिश, सेमल तथा प्लक्ष छाल चूर्ण २ से ३ ग्राम को मधु के साथ सेवन कर अनुपान में दूध पीने से अथवा चूर्ण से दूध को पकाकर मधु मिला कर पीने से अथवा चावल के धोवन में मधु तथा प्रियंगु पेस्ट मिलाकर पीने से पित्तातिसार तथा रक्तातिसार में लाभ होता है।
  • १ से २ ग्राम प्रियंगु फल १ से २ ग्राम के पेस्ट में मधु मिलाकर तण्डुलोदक के साथ पीने से रक्तातिसार में लाभ होता है।

प्रियंगु पेट फूलने की समस्या से राहत दिलाता है 

पेट की समस्या को शांत करने के लिए प्रियंगु चूर्ण का सेवन करने से पाचन संबंधी समस्या, आमाशय शूल में लाभ होता है।

प्रियंगु पेट दर्द से आराम दिलाता है 

पेट दर्द से परेशान हैं और कोई भी उपचार काम नहीं आ रहा है, तो १ से २ ग्राम प्रियंगु फूल तथा फल चूर्ण का सेवन करने से अजीर्ण या बदहजमी, अतिसार या दस्त, उदर शूल या पेट दर्द तथा प्रवाहिका या पेचिश में लाभ होता है, इसके अलावा ५० मि.ग्रा. हींग, १ ग्राम प्रियंगु तथा १ ग्राम टंकण को गुड़ के साथ पीसकर १२५ मि.ग्रा. की गोली बनाकर सुबह शाम खिलाने से पेट दर्द से आराम मिलता है।

प्रियंगु मूत्र संबंधी बीमारियों के उपचार में लाभकारी है 

मूत्र करते वक्त दर्द होना, जलन होना, रूक-रूक कर पेशाब आने जैसे लक्षण मूत्र संबंधी बीमारियों में होते हैं, इनसे राहत पाने में प्रियंगु का सेवन लाभकारी होता है, प्रियंगु के पत्तों को पानी में भिगोकर, मसल-छानकर मिश्री मिलाकर पीने से मूत्र-विकारों में लाभ होता है।

प्रियंगु सुखप्रसवार्थ में फायदेमंद है 

प्रियंगु जड़ के पेस्ट को नाभि के नीचे लेप करने से कठिन प्रसव में गर्भ सरलता से बाहर आ जाता है।

प्रियंगु आमवात या गठिया से आराम दिलाने में फायदेमंद है 

प्रियंगु पत्ता, छाल, फूल तथा फल को पीसकर लेप करने से आमवात या वातरक्त के दर्द से जल्दी राहत पाने में मदद मिलती है।

प्रियंगु विसर्प या हर्पिज के इलाज में फायदेमंद है 

शैवाल, नलमूल, वीरा तथा गंधप्रियंगु के १ से २ ग्राम में थोड़ा-सा घी मिला कर लेप करने से कफज विसर्प में लाभ होता है।

प्रियंगु कुष्ठ रोग के उपचार में लाभकारी है 

प्रियंगु बीज या फूलों को पीसकर लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है, कुष्ठ के लक्षण बेहतर होने में मदद मिलती है। 

प्रियंगु रक्तपित्त में लाभकारी है 

प्रियंगु का औषधीय गुण कान- नाक से ब्लीडिंग होने पर उसको रोकने में मदद करता है, इसके लिए प्रियंगु का इस तरह से इस्तेमाल करने पर लाभ मिलता है :-

  • लाल कमल एवं नील कमल का केसर, पृश्निपर्णी तथा फूलप्रियंगु से जल को पकाकर उस जल की पेया बना कर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  • खैर सार, कोविदार, सेमल तथा प्रियंगु फूल के चूर्ण १ से ३ ग्राम को मधु के साथ सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  • प्रियंगु-युक्त उशीरादि चूर्ण अथवा केवल प्रियंगु में समान मात्रा में लाल चंदन चूर्ण मिलाकर १ से २ ग्राम चूर्ण को शर्करा युक्त चावल के धोवन में घोल कर पीने से रक्तपित्त, तमक-श्वास, तृष्णा, दाह आदि का शमन होता है।
  • १ से २ ग्राम प्रियंगु पुष्प चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

प्रियंगु अतिसार या दस्त को रोकने में फायदेमंद है 

समान मात्रा में प्रियंगु, सौवीराञ्जन तथा नागरमोथा के चूर्ण १ से ३ ग्राम में मधु मिलाकर, शिशु को चटाकर अनुपान में चावल का धोवन पिलाने से बच्चों में होने वाली पिपासा, उल्टी तथा अतिसार में लाभकारी होता है।

प्रियंगु कीट के विष को कम करने में फायदेमंद है 

प्रियंगु कीट के विष के असर को कम करने में मदद करता है, उसका इस तरह से इस्तेमाल करने पर ज्यादा लाभ मिलता है :-

  • फूलप्रियंगु, हल्दी तथा दारुहल्दी के १ से २ ग्राम चूर्ण में शहद तथा घी मिलाकर बनाए गए अगद को लेप, नस्य, पान आदि विविध-प्रकार से प्रयोग करने से लूता तथा कीट-दंशजन्य विषाक्त प्रभावों से आराम मिलता है।
  • भोजन में प्रियंगु का प्रयोग विष के असर को कम करने में सहायक होता है।

प्रियंगु के उपयोगी भाग 

आयुर्वेद के अनुसार प्रियंगु का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है :-

  • पत्ता
  • फल
  • फूल 
  • जड़ | 

प्रियंगु का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए ?

यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए प्रियंगु का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें, चिकित्सक के सलाह के अनुसार १ से २ ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।

प्रियंगु कहां पाया या उगाया जाता है ?

समस्त भारत में प्रियंगु लगभग १८०० मी. की ऊँचाई पाया जाता है।

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