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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
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नींबू के फायदे
नींबू छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है, इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है, फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है, प्रारूपिक नींबू गोल या अंडाकार होता है, छिलका पतला होता है जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है, पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है, गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है, कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं।
नींबू के फायदे |
नींबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है, इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है, यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से ४००० फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है, इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़ करना या खट्टा नींबू, जंबीरी आदि, कागजी नींबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं, इनमें कागजी नींबू सबसे अधिक लोकप्रिय है, इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तरप्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं।
नींबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है, इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है, इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार आदि तैयार किए जाते हैं।
नींबू का परिचय
विटामिन सी से भरपूर नींबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है, इसका रंग पीला या हरा तथा स्वाद खट्टा होता है, इसके रस में ५% साइट्रिक अम्ल होता है तथा जिसका pH २ से ३ तक होता है, किण्वन पद्धति के विकास के पहले नींबू ही साइट्रिक अम्ल का सर्वप्रमुख स्रोत था, साधारणतः नींबू के पौधे आकार में छोटे ही होते हैं, पर कुछ प्रजातियाँ ६ मीटर तक लम्बी उग सकती हैं, नींबू की उत्पत्ति कहाँ हुई इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है, परन्तु आमतौर पर लोग यही मानते हैं कि यह पौधा मूल रूप से भारत, उत्तरी म्यांमार एवं चीन का निवासी है, खाने में नींबू का प्रयोग कब से हो रहा है, इसके निश्चित प्रमाण तो नहीं हैं, लेकिन यूरोप और अरब देशों में लिखे गए दसवीं सदी के साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है, मुगल काल में नींबू को शाही फल माना जाता था, कहा जाता है कि भारत में पहली बार असम में नींबू की पैदावार हुई।
नींबू के पौष्टिक गुण
नींबू में ए, बी और सी विटामिनों की भरपूर मात्रा है, विटामिन ए अगर एक भाग है, तो विटामिन बी दो भाग और विटामिन सी तीन भाग, इसमें पोटेशियम, लोहा, सोडियम, मैगनेशियम, तांबा, फास्फोरस और क्लोरीन तत्व तो हैं ही उसके आलावा प्रोटीन, वसा और कार्बोज भी पर्याप्त मात्रा में हैं, विटामिन सी से भरपूर नींबू शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही एंटी आक्सीडेंट का काम भी करता है और कोलेस्ट्राल भी कम करता है, नींबू में मौजूद विटामिन सी और पोटेशियम घुलनशील होते हैं, जिसके कारण ज्यादा मात्रा में इसका सेवन भी नुकसानदायक नहीं होता, रक्ताल्पता से पीडि़त मरीजों को भी नींबू के रस के सेवन से फायदा होता है, यही नहीं बल्कि नींबू का सेवन करने वाले लोग जुकाम से भी दूर रहते हैं, एक नींबू दिन भर की विटामिन सी की जरूरत पूरी कर देता है, नींबू के कुछ घरेलू प्रयोगों पर लगभग हर भारतीय का विश्वास हैं, ऐसा माना जाता है कि दिन भर तरोताजा रहने और स्फूर्ति बनाए रखने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में एक नींबू का रस व एक चम्मच शहद मिलाकर पीना चाहिए, एक बाल्टी पानी में एक नींबू के रस को मिलाकर गर्मियों में नहाने से दिनभर ताजगी बनी रहती है, गर्मी के मौसम से बचने के लिए नींबू को प्याज व पुदीने के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए, लू से बचाव के लिए नींबू को काले नमक वाले पानी में मिलाकर पीने से दोपहर में बाहर रहने पर भी लू नहीं लगती, इसके अलावा इसमें विटामिन ए, सेलेनियम और जिंक भी होता है, गले में मछली का कांटा फंस जाए तो नींबू के रस को पीने से निकल जाता है।
नींबू की खेती
नींबू के पौधे के लिए पाला अत्यंत हानिकारक है, यह दक्षिण भारत में अच्छी तरह पैदा हो सकता है, क्योंकि वहाँ की जलवायु उष्ण होती है और पाला तथा शीतवायु का नितांत अभाव रहता है, पौधे विभिन्न प्रकार की भूमि में भिन्न प्रकार के उगते हैं, परंतु उपजाऊ तथा समान बनावट की दोमट मिट्टी, जो आठ फुट की गहराई तक एक सी हो, आदर्श समझी जाती है, स्थायी रूप से पानी एकत्रित रहना अथवा सदैव ऊँचे स्तर तक पानी विद्यमान रहना या जहाँ पानी का स्तर घटता-बढ़ता रहे, ऐसे स्थान पौधों की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त हैं।
नींबू के पौधे साधारणतया बीज तथा गूटी से उत्पन्न किए जाते हैं, नियमानुसार पौधों को २०-२० फुट के अंतर पर लगाना चाहिए और इसके लिए ढाई फुट x ढाई फुट x ढाई फुट के गड्ढे उपयुक्त हैं, इनमें बरसात के ठीक पहले गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट खाद, एक मन प्रति गड्ढे के हिसाब से डालनी चाहिए, पौधे लगाते समय गड्ढे के मध्य से थोड़ी मिट्टी हटाकर उसमें पौधा लगा देना चाहिए और उस स्थान से निकली हुई मिट्टी जड़ के चारों ओर लगाकर दबा देनी चाहिए, जुलाई की वर्षा के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए तभी पौधा लगाना चाहिए, पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जमीन में इनकी गहराई उतनी ही रहे जितनी रोप में थी, पौधे लगाने के बाद तुरंत ही पानी दे देना चाहिए, जलवृष्टि पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में कई बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है, सिंचाई का परिमाण जलवृष्टि के वितरण एवं मात्रा पर निर्भर है।
हर सिंचाई में पानी इतनी ही मात्रा में देना चाहिए, जिससे भूमि में पानी की आर्द्रता ४ से ६ प्रतिशत तक विद्यमान रहे, सिंचाई करने की सबसे उपयुक्त विधि रिंग रीति है, नींबू प्रजाति के सभी प्रकार के फलों के लिए खाद की कोई निश्चित मात्रा अभिस्तावित नहीं की जा सकती है, पर साधारण रूप से नींबू के लिए ४० सेर गोबर की खाद, एक सेर सुपर फॉस्फेट तथा आधा सेर पोटासियम सल्फेट पर्याप्त होता है, गौण तत्वों की भी इसको आवश्यकता पड़ती है, जिनमें मुख्य जस्ता, बोरन, ताँबा तथा मैंगनीज़ हैं।
जहाँ पर सिंचाई के साधन हैं, वहाँ पर अंतराशस्य लगाना लाभप्रद होगा, दक्षिण भारत तथा असम में अनन्नास तथा पपीता नींबू के पेड़ों के बीच में लगाते हैं, इनके अतिरिक्त तरकारियाँ जैसे गाजर, टमाटर, मूली, मिर्चा तथा बैगन आदि भी सरलतापूर्वक उत्पन्न किए जा सकते हैं, नींबू प्रजाति के पौधों को सिद्धांत: कम काट-छाँट की आवश्यकता पड़ती है, जो कुछ काट-छाँट की भी जाति है, वह पेड़ों की वांछनीय आकार देने के लिए और अच्छी दशा में रखने के लिए की जाती है।
उत्तरी भारत में साधारणत: फल साल में दो बार आते हैं, परंतु इनके फूलने का प्रमुख समय बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) है, इसके उत्पादन की कोई विश्वसनीय संख्या प्राप्त नहीं है, किंतु नींबू की विभिन्न किस्मों का उत्पादन प्रति पेड़ १५० से १००० फलों के लगभग होता है, नींबू को अनेक प्रकार के रोग तथा कीड़े भी हानि पहुँचाते हैं, इनमें से शल्क, नींबू कैंकर, साइट्रस रेड माइट, ग्रीन मोल्ड, मीली बग इत्यादि प्रमुख हैं।
नींबू का उत्पादन
विश्व में सबसे अधिक नींबू का उत्पादन भारत में होता है, यह विश्व के कुल नींबू उत्पादन का १६ प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है, मैक्सिको, अर्जन्टीना, ब्राजील एवं स्पेन अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं, २००७ के अनुसार नींबू लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उत्पादन देता है, परन्तु जीवांश पदार्थ की अधिकता वाली उत्तम जल निकास युक्त दोमट भूमि जिसकी गहराई २ से २.५ मी. या अधिक हो आदर्श मानी जाती है, भूमि का पी-एच ६.५ से ७.० होने से सर्वोत्तम वृद्धि और उपज मिलती है।
इसकी कुछ प्रमुख किस्में हैं कागजी नींबू, प्रमालिनी, विक्रम, चक्रधर, पी के एम-१ और साईं शर्बती इनमें से कागजी नींबू सर्वाधिक महत्वपूर्ण किस्म है, इसकी व्यापक लोकप्रियता के कारण इसे खट्टा नींबू का पर्याय माना जाता है, प्रमालिनी किस्म गुच्छे में फलती है, जिसमें ३ से ७ तक फल होते हैं, यह कागजी नींबू की तुलना में ३० प्रतिशत अधिक उपज देती है, इसके फल में ५७ प्रतिशत रस पाया जाता है, विक्रम नामक किस्म भी गुच्छों में फलन करती है, एक गुच्छे में ५ से १० तक फल आते हैं, कभी-कभी मई-जून तथा दिसम्बर में बेमौसमी फल भी आते हैं, कागजी नीँबू की अपेक्षा यह ३० से ३२ प्रतिशत अधिक उत्पादन देती है, चक्रधर नामक किस्म खट्टा नींबू की बीज रहित किस्म है, जो रोपण के चौथे वर्ष से फल देना प्रारम्भ कर देती है, इसमें ६० से ६६ प्रतिशत रस पाया जाता है |
इसके फल प्राय: जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई तथा सितम्बर-अक्टूबर में मिलते हैं, पी के एम-१ नामक किस्म उच्च उत्पादन देने वाली किस्म है, जिसके फल गोल मध्यम से लेकर बड़े आकार के होते हैं, पीले रंग के फलों में लगभग ५२ प्रतिशत तक रस मिलता है, साई शरबती उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्म है, इसमें ग्रीष्म फलन की प्रवृत्ति पाई जाती है, बीज रहित नींबू यह एक नया चयन है, जो अन्य किस्मों से दोगुना उत्पादन देता है, यह एक पछैती किस्म है, जिसके फल हल्के गुलाबी रंग वाले और पतले छिलके वाले होते हैं, इसके अतिरिक्त ताहिती या पर्शियन वर्ग के नींबू गुणसूत्र त्रिगुणित होते हैं, फल आकार में बड़े व बीजरहित होते हैं, असम के कुछ क्षेत्रों में अभयपुरी लाइम तथा करीमगंज लाइम भी उगाए जाते हैं।
पुराने समय से ही नींबू एक गर्भ निरोधक के रूप में इस्तेमाल होता रहा है, पर आधुनिक युग में इसके इस गुण की ओर लोगों ने ध्यान कम ही दिया है, ऑस्ट्रेलिया के कुछ वैज्ञानिकों ने अपने एक शोध के दौरान पाया है कि नींबू का रस मानव शुक्राणु को मारने में सक्षम है, साथ ही यह एच आई वी विषाणु को भी मार देता है।
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