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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
को
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नीलगिरी के फायदे
नीलगिरी मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाया जाने वाला पौधा है, इसके अलावा भारत, उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप में भी नीलगिरी के पौधो की खेती की जाती है, दुनिया भर में इसकी लगभग ३०० प्रजातियां प्रचलन में हैं, यह पेड़ काफी लंबा और पतला होता है, इसकी पत्तियों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग औषधि और अन्य रूप में किया जाता है, पत्तियां लंबी और नुकीली होती हैं, जिनकी सतह पर गांठ पाई जाती है, जिसमें तेल संचित रहता है, इस पौधे की पल्लवों पर फूल लगे होते हैं, जो एक कप जैसी झिल्ली से अच्छी तरह ढंके होते हैं, फूलों से फल बनने की प्रक्रिया के दौरान यह झिल्ली स्वयं ही फट कर अलग हो जाती है, इसके फल काफी सख्त होते हैं, जिसके अंदर छोटे-छोटे बीज पाए जाते हैं।
नीलगिरी के फायदे |
नीलगिरी का परिचय
यूकेलिप्टस मिर्टेसी कुल का एक बहुत ऊँचा वृक्ष हैं, इसकी लगभग ६०० जातियाँ हैं, जो अधिकांशत: आस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाई जाती हैं, यूकेलिप्टस रेंगनेस इनमें सबसे ऊँची जाति हैं, जिसके वृक्ष ३२२ फुट तक ऊँचे होते हैं, उपयोगिता के कारण यूकेलिप्टस अब अमरीका, यूरोप, अफ्रीका एवं भारत में बहुतायत से उगाया जा रहा है, बीज नरम, उपजाऊ भूमि में सिंचाई करके बो दिया जाता है, कुछ वर्ष बाद छोटे-छोटे पौधों को सावधानी से निकालकर, जंगलों में लगा दिया जाता है, ऐसे समय जड़ों की पूरी देखभाल करनी पड़ती है, अन्यथा थोड़ी असावधानी से ही उनकी जड़े नष्ट हो जाती हैं, इसके कारण पौधे सूख जाते हैं, दक्षिण भारत में नीलगिरि पर्वत पर यूकेलिप्टस ग्लोबूलस जातिवाला वृक्ष बाहर से मँगाकर लगाया गया है, इस स्थान पर यह बहुत अच्छा उगता है और काफी ऊँचे-ऊँचे वृक्ष के जंगल तैयार हो गए हैं, ऊँचे वृक्ष से अच्छे प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है, जो जहाज बनाने, इमारती खंभे अथवा सस्ते फर्नीचर के बनाने में काम आती है, इसकी पत्तियों से एक शीघ्र उड़ने वाला तेल, यूकेलिप्टस तेल निकाला जाता है, जो गले, नाक, गुद्रे तथा पेट की बीमारियों, सर्दी जुकाम में औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है, इस वृक्ष से एक प्रकार का गोंद भी प्राप्त होता है, पेड़ो की छाल कागज बनाने और चमड़ा बनाने के काम में आती है।
नीलगिरी का विकास
नीलगिरी के पौधे सामान्य मिट्टी और जलवायु में उगते हैं, जिन क्षेत्रों में औसत तापमान ३० से ३५ डिग्री तक रहता है, वो नीलगिरी की खेती के लिए अनुकूल माने जाते हैं, इस पौधे का विकास बीजों और कलम दोनों से ही किया जा सकता है, चूंकि इसके पौधे काफी लंबे होते हैं, इसलिए प्राय: इन्हें जमीन में ही रोपा जाता है, पौधे के उचित विकास के लिए इन्हें पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश, हवा और पानी की आवश्यकता होती है।
नीलगिरी का तेल
नीलगिरी की ताजा पत्तियों को तोड़कर इससे तेल बनाया जाता है, जो विभिन्न रोगों के उपचार में काम आता है, इन पत्तियों से डिस्टीलेशन की प्रक्रिया द्वारा तेल निकालने का काम होता है, इस प्रक्रिया के बाद रंगहीन तेल प्राप्त होता है, जिसमें किसी भी प्रकार का स्वाद नहीं होता, इस तेल की सबसे बडी विशेषता यह है, कि यह केवल अल्कोहल में घुलनशील होता है, नीलगिरी तेल का प्रयोग एक एंटीसेप्टिक और उत्तेजक औषधि के रूप में किया जाता है, यह हृदय गति को बढाने में मदद करता है, नीलगिरी का तेल जितना पुराना होता जाता है, इसका असर और भी बढता जाता है, यह काफी हद तक मलेरिया रोग के उपचार में भी काम में आता है, गले में दर्द होने पर भी नीलगिरी के तेल का उपयोग किया जाता है।
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