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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
को
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पुनर्नवा के फायदे
पुनर्नवा या शोथहीन या गदहपूरना एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है, इसका वानस्पतिक नाम बोअरहेविया डिफ्यूजा है, श्वेत पुनर्नवा का पौधा बहुवर्षायु और प्रसरणशील होता है, क्षुप २ से ३ मीटर लंबे होते हैं, ये प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में नए निकलते हैं व ग्रीष्म में सूख जाते हैं, इस क्षुप के काण्ड प्रायः गोलाई लिए कड़े, पतले व गोल होते हैं, पर्व संधि पर ये मोटे हो जाते हैं, शाखाएं अनेक लंबी, पतली तथा लालवर्ण की होती हैं, पत्ते छोटे व बड़े दोनों प्रकार के होते हैं, लंबाई २५ से २७ मिलीमीटर होती है, निचला तल श्वेताभ होता है व छूने पर चिकना प्रतीत होता है।
पुनर्नवा के फायदे |
पुनर्नवा का नामकरण
इस विशेषणात्मक नामकरण की पृष्ठभूमि पूर्णतः वैज्ञानिक है, पुनर्नवा का पौधा जब सूख जाता है, तो वर्षा ऋतु आने पर इन से शाखाएँ पुनः फूट पड़ती हैं और पौधा अपनी मृत जीर्ण-शीर्णावस्था से दुबारा नया जीवन प्राप्त कर लेता है, इस विलक्षणता के कारण ही इसे ऋषिगणों ने पुनर्नवा नाम दिया है, इसे शोथहीन व गदहपूरना भी कहते हैं।
पहचान मतभेद और मिलावट
पुनर्नवा के नामों के संबंध में भारी मतभेद रहा है, भारत के भिन्न-भिन्न भागों में तीन अलग-अलग प्रकार के पौधे पुनर्नवा नाम से जाने जाते हैं, ये हैं- बोअरहेविया डिफ्यूजा, इरेक्टा तथा रीपेण्डा, आय.सी.एम.आर. के वैज्ञानिकों ने वानस्पतिकी के क्षेत्र में शोधकर मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया नामक ग्रंथ में इस विषय पर लिखकर काफी कुछ भ्रम को मिटाया है, उनके अनुसार बोअरहेविया डिफ्यूजा, जिसके पुष्प श्वेत होते हैं, वह औषधीय गुणों वाली है, बाजार में उपलब्ध पुनर्नवा में बहुधा एक अन्य मिलती-जुलती वनस्पति ट्रांएन्थीला पाँरचूली क्रास्ट्रम की मिलावट की जाती है, रक्त पुनर्नवा या लाल पुनर्नवा एक सामान्य पाई जाने वाली घास है, जो सर्वत्र सड़कों के किनारे उगी फैली हुई मिलती है, श्वेत पुनर्नवा रक्त वाली प्रजाति से बहुत कम सुलभ है, इसलिए श्वेत औषधीय प्रजाति में रक्त पुनर्नवा की अक्सर मिलावट कर दी जाती है।
पुष्प पत्रकोण से निकलते हैं, छतरी के आकार के छोटे-छोटे सफेद ५ से १५ की संख्या में होते हैं, फल छोटे होते हैं तथा चिपचिपे बीजों से युक्त होते हैं, ये शीतकाल में फलते हैं, पुनर्नवा की जड़ प्रायः १ फुट तक लंबी, ताजी स्थिति में उँगली के बराबर मोटी गूदेदार व उपमूलों सहित होती है, यह सहज ही बीच से टूट जाती है, गंध उग्र व स्वाद में तीखी होती है, उल्टी लाने वाला तिक्त गाढ़ा दूध समान द्रव्य इसमें से तोड़ने पर निकलता है, उपरोक्त गुणों द्वारा सही पौधे की पहचान कर ही प्रयुक्त किया जाता है, आयुर्वेद की नजर से पुनर्नवा उष्णवीर्य, तिक्त, रुखा और कफ नाशक होता है, इससे सूजन, पांडुरोग, हर्द्रोग, खांसी, सीने का घाव और पीड़ा का विनाशक होता है।
औषधीय घटक और गुण
इस औषधि का मुख्य औषधीय घटक एक प्रकार का एल्केलायड है, जिसे पुनर्नवा कहा गया है, इसकी मात्रा जड़ में लगभग ०.०४ प्रतिशत होती है, अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग ६.५ प्रतिशत होती है, पुनर्नवा के जल में न घुल पाने वाले भाग में स्टेरॉन पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल और एल्फा-टू साईटोस्टीराल प्रमुख है, इसके निष्कर्ष में एक ओषजन युक्त पदार्थ ऐसेण्टाइन भी मिला है, इसके अतिरिक्त कुछ महत्त्वपूर्ण् कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं, अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं, इन्हीं के कारण सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने की सामर्थ्य बढ़ती है।
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