गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

केसर के फायदे

केसर के फायदे

केसर एक सुगंध देनेवाला पौधा है, इसके पुष्प की वर्तिकाग्र को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन कहते हैं, यह इरिडेसी कुल की क्रोकस सैटाइवस नामक क्षुद्र वनस्पति है, जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है, भारत में यह केवल जम्मू तथा कश्मीर के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं, प्याज तुल्य इसकी गुटिकाएँ प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में रोपी जाती हैं और अक्टूबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं।

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केसर के फायदे

केसर का क्षुप १५ से २५ सेंटीमीटर ऊँचा, परंतु कांडहीन होता है, पत्तियाँ मूलोभ्दव, सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं, इनके बीच से पुष्पदंड निकलता है, जिसपर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं, पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं, कुक्षिवृंत नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं, इनकी ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं, केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित कटु, परंतु रुचिकर होती है।

इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिए किया जाता हैं, चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, आर्तवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है, अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है।

केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस है, अंग्रेज़ी में इसे सैफरन नाम से जाना जाता है, यह इरिडेसी कुल का क्षुद्र वनस्पति है, जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, आइरिस परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है, विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं- फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, ऑस्ट्रेलिया, तुर्किस्तान, चीन, पाकिस्तान के क्वेटा एवं स्विटज़रलैंड आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को कुल उत्पादन का ८०% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग ३०० टन प्रतिवर्ष है। 

भारत में केसर :-

केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है, केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है, केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है, क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता रहा सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपए किलो है, परंतु कुछ राजनीतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है, यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है, असली केसर बहुत महंगी होती है, कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है, एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था, उत्तर प्रदेश के चौबटिया ज़िले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं, विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है।

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी केसर की बहार आ जाती है, वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं, क्योंकि केसर के कंद सूखी ज़मीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ़ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं और इस रंग की खुशबू सारे वातावरण में बसी रहती है, इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्ट्ठा करते हैं, केसर की सिर्फ ४५० ग्राम मात्रा बनाने के लिए क़रीब ७५ हज़ार फूल लगते हैं। 

केसर का पौधा :-

केसर को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग २००० मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है, पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है, यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है, मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद द्वारा उगाया जाता है।

केसर का पौधा सुगंध देने वाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप १५ से २५ सेमी ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है, इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं, जो मूलोभ्दव, सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं, इनके बीच से पुष्पदंड निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं, अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं, प्याज तुल्य केसर के कंद गुटिकाएँ प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं, इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन कहते हैं, इसमें अकेले या २ से ३ की संख्या में फूल निकलते हैं, इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है, ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं, इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं, इस मादा भाग को वर्तिका एवं वर्तिकाग्र कहते हैं यही केसर कहलाता है, प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं, लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में अग्निशाखा नाम से भी जाना जाता है।

इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं, कुक्षिवृंत नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं, इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं।

इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है, केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित कटु, परंतु रुचिकर होता है, इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है, केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं, सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं, रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें- मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं, १५०००० फूलों से लगभग १ किलो सूखा केसर प्राप्त होता है।

केसर खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है, इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिए किया जाता हैं, गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है, यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है, यह घुलनशील होता है साथ ही अत्यंत पीला भी प्रमुख वर्णको में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि पाए जाते हैं, इसमें ईस्टर कीटोन एवं वाष्पशील सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं, अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं, इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है, केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल १.३७ प्रतिशत, आर्द्रता १२ प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं, अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है।

आयुर्वेद में केसर :-

केसर का उपयोग आयुर्वेदिक नुस्खों में, खाद्य व्यंजनों में और देव पूजा आदि में तो केसर का उपयोग होता ही था पर अब पान मसालों और गुटकों में भी इसका उपयोग होने लगा है, केसर बहुत ही उपयोगी गुणों से युक्त होती है, यह कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी तथा खाद्य पदार्थ और पेय को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।

चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, आर्तवजनक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है, अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है, यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति बनाए रखने वाली, कामोत्तेजक, त्रिदोष नाशक, आक्षेपहर, वातशूल शामक, दीपक, पाचक, रुचिकर, मासिक धर्म साफ़ लाने वाली, गर्भाशय व योनि संकोचन, त्वचा का रंग उज्ज्वल करने वाली, रक्तशोधक, धातु पौष्टिक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने वाली, कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, वातनाड़ियों के लिए शामक, बल्य, वृष्य, मूत्रल, स्तन वर्द्धक, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी तथा खाद्य पदार्थ और पेय को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।

आयुर्वेदों के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है, यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत, मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है, प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।

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