गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

काली मिर्च के फायदे

काली मिर्च के फायदे 

वनस्पति जगत् में पिप्पली कुल के मरिचपिप्पली नामक लता सदृश बारहमासी पौधे के अधपके और सूखे फलों का नाम काली मिर्च है, पके हुए सूखे फलों को छिलकों से बिलगाकर सफेद गोल मिर्च बनाई जाती है, जिसका व्यास लगभग ५ मिमी होता है यह मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है।

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काली मिर्च के फायदे 

मूल स्थान तथा उत्पादक देश :-

काली मिर्च के पौधे का मूल स्थान दक्षिण भारत ही माना जाता है भारत से बाहर इंडोनेशिया, बोर्नियो, इंडोचीन, मलय, लंका और स्याम इत्यादि देशों में भी इसकी खेती की जाती है, विश्वप्रसिद्ध भारतीय गरम मसाले में ऐतिहासिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से काली मिर्च का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन और उपयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है, ग्रीस, रोम, पुर्तगाल इत्यादि संसार के विभिन्न देशों के सहस्रों वर्ष पुराने इतिहास में भी इसका वर्णन मिलता है, १५वीं शदी में वास्को-डि-गामा द्वारा समुद्रमार्ग से भारत के सुप्रसिद्ध मलाबार के तटवर्ती इलाकों की खोज का मुख्य कारण भी काली मिर्च के व्यापार का आर्थिक महत्व ही था।

काली मिर्च का पौधा त्रावणकोर और मालाबार के जंगलों में बहुलता से उत्पन्न होता है, इसके अतिरिक्त त्रावणकोर, कोचीन, मलाबार, मैसूर, कुर्ग, महाराष्ट्र तथा असम के सिलहट और खासी के पहाड़ी इलाकों में बहुतांश में उपजाया भी जाता है, दक्षिण भारत के बहुत से भागों में इसकी खेती घर-घर होती है, वास्तव में काली मिर्च के भारतीय क्षेत्र का विस्तार उत्तर मलाबार और कोंकण से लेकर दक्षिण में त्रावणकोर कोचीन तक समझा जाना चाहिए।

काली मिर्च का व्यापार :-

आज काली मिर्च अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण पदार्थ है, संसार के कुल देशों में काली मिर्च का उत्पादन गत महायुद्ध के पूर्व के ९६,५२५ मीटरी टनों से गिरकर लगभग ४५,७२५ मीटरी टनों पर पहुँच गया था, इस भारी कमी का मुख्य कारण गत महायुद्ध में इंडोनेशिया की काली मिर्च की खेती का सर्वनाश ही समझना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में केवल भारत का उत्पादन ही महायुद्ध के पूर्व के १८,८०० मीटरी टनों से बढ़कर २५,४०० मीटरी टनों से ऊपर पहुँचा है।

काली मिर्च की खेती :-

काली मिर्च का पौधा हरे भरे वृक्षों और दीमक से बचे रहने वाले अन्य आश्रयों पर लता की तरह चढ़कर खूब पनपता है, इसकी लताएँ स्थूल एवं पुष्ट, कांडग्रंथियाँ स्थूल और कभी-कभी मूलयुक्त तथा पत्तियाँ चिकनी, लंबाग्र, संवृत, अंडाकार तथा १० से १८ सें.मी. लंबी और ५ से १२ सें.मी. चौंड़ी होती है, यह बारहमासी पौधा साधारणतया २५ से ३०० वर्ष तक फलता-फूलता रहता है, कहीं-कहीं तो ६० वर्ष से भी अधिक तक फलता देखा गया है, यह पौधा समुद्रतट से १,०७० मीटर की ऊँचाई तक होता है, इसे वर्षा द्वारा ही जल की प्राप्ति होती है, स्वभावत: यह पौधा नमी प्रधान और २,०३२ मिलीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा तथा १० डिग्री सें. से ४० डिग्री सें. तक के तापवाले इलाकों में ही पनप सकता है, पौधों के विस्तार के लिए इनकी कलमें काटकर बोई जाती है, ऊँचे पेड़ों के आश्रय से काली मिर्च के पौधे ३० से ४५ मीटर तक ऊँचे चढ़ जाते हैं, किंतु फलों को सुगमतापूर्वक उतारने के लिए इन्हें साधारण तथा ६ से ९ मीटर तक ही बढ़ने दिया जाता है।

काली मिर्च के गहरे हरे रंग के घने पौधों पर जुलाई के बीच छोटे-छोटे सफेद और हल्के पीले रंग के फूल उग आते हैं और आगामी जनवरी से मार्च के बीच इनके नारंगी रंग के फल पककर तैयार हो जाते हैं, फल गोल और व्यास में ३ से ६ मि.मी. होता है, साधारणतया तीसरे वर्ष के पश्चात् पौधे फलने लगते हैं, सातवें वर्ष से पौधों पर फलों के १०० से १५० मिलीमीटर लंबे गुच्छे अधिकतम मात्रा में लगने प्रारंभ होते हैं, सूखने पर प्रत्येक पौधे से साधारणतया ४ से ६ किलोग्राम तक गोल मिर्च मिल जाती है, इसके प्रत्येक गुच्छे पर ५० से ६० दाने रहते हैं, पकने पर इन फलों के गुच्छों को उतारकर भूमि पर अथवा चटाइयों पर फैलाकर हथेलियों से रगड़कर गोल मिर्च के दानों को अलग किया जाता है, इन्हें ५ से ६ दिनों तक धूप में सूखने दिया जाता है, पूरी तरह सूख जाने पर गोल मिर्च के दोनों के छिलकों पर सिकुड़ने से झुरियाँ पड़ जाती हैं और इनका रंग गहरा काला हो जाता है, इंडोनेशिया, स्याम आदि देशों में पूर्णतया पके फलों को उतारकर पानी में भिगोने से छिलकों से बिलगाकर सफेद गोल मिर्च के रूप में तैयार किया जाता है, सफेद गोल मिर्च तेजी और कड़वाहट में काली मिर्च से कम प्रभावशाली होती है, पर स्वाद अधिक रुचिकर होता है भारत से प्रतिवर्ष लगभग २० करोड़ रुपए की लागत की काली मिर्च विदेशों में भेजी जाती है, इस निर्यात में अमरीकी डालरों का भाग लगभग ६४ प्रतिशत से अधिक ही है।

काली मिर्च का उपयोग :-

इसके दानों में ५ से ९ प्रतिशत तक पिपेरीन, पिपेरिडीन और चैविसीन नामक ऐल्केलायडों के अतिरिक्त एक सुगंधित तैल १ से २.६ प्रतिशत तक, ६ से १४ प्रतिशत हरे रंग का तेज सुगंधित गंधाशेष, ३० प्रतिशत स्टार्च इत्यादि पाए जाते हैं, काली मिर्च सुगंधित, उत्तेजक और स्फूर्तिदायक वस्तु है, आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा शास्त्रों में इसका उपयोग कफ, वात, श्वास, अग्निमांद्य उन्निद्र इत्यादि रोगों में बताया गया है, भूख बढ़ाने और ज्वर की शांति के लिए दक्षिण में तो इसका विशेष प्रकार का रस भोजन के साथ पिया जाता है, भारतीय भोजन में मसाले के रूप में इसका न्यूनाधिक उपयोग सर्वत्र होता है, पाश्चात्य देशों में इसका विशिष्ट उपयोग विविध प्रकार के मांसों की डिब्बाबंदी में खाद्य पदार्थो के परिरक्षण के लिए और मसाले के रूप में भी किया जाता है।

काली मिर्च और सफेद मिर्च :-

सफेद मिर्च, काली मिर्च की एक विशेष किस्म है, जिसकी कटाई फसल पकने से पहले ही हो जाती है, सफेद और काली मिर्च दोनों एक ही पौधे के फल हैं, बस अपने रंग की वजह से उनका इस्तेमाल अलग हो जाता है, सफेद मिर्च का प्रयोग आमतौर हल्के रंग के व्यंजनों जैसे कि सूप, सलाद, ठंडाई, बेक्ड रेसिपी इत्यादि में किया जाता है।

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