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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
को
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मुलहठी (यष्टिमधु) के फायदे
मुलहठी के तने का प्रयोग अधिकतर किया जाता है, यह बलवर्धक, दृष्टिवर्धक, पौरुष शक्ति की वृद्धि करने वाली, वर्ण को आभायुक्त करने वाली, खांसी, स्वरभेद, व्रणरोपण तथा वातरक्त (गाउट) में अत्यंत उपयोगी होती है, इसका उपयोग पेप्टिक अल्सर के इलाज में किया जाता है, एसिडिटी के इलाज में तो यह बेहद कारगर है, यष्टिमधु या मुलहठी या मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है, इसका वैज्ञानिक नाम ग्लीसीर्रहीजा ग्लाब्र कहते है, इसे संस्कृत में मधुयष्टी, बंगला में जष्टिमधु, मलयालम में इरत्तिमधुरम, तथा तमिल में अतिमधुरम कहते है, इसमें गुलाबी और जामुनी रंग के फूल होते है, इसके फल लम्बे चपटे तथा कांटे होते है, इसकी पत्तियाँ सयुक्त होती है, मूल जड़ों से छोटी-छोटी जडे निकलती है, इसकी खेती पूरे भारतवर्ष में होती है, मुलहठी एक प्रसिद्ध और सर्वसुलभ जड़ी है, काण्ड और मूल मधुर होने से मुलहठी को यष्टिमधु कहा जाता है, मधुक क्लीतक, जेठीमध तथा लिकोरिस इसके अन्य नाम हैं, इसका बहुवर्षायु क्षुप लगभग डेढ़ मीटर से दो मीटर ऊँचा होता है, जड़ें गोल-लंबी झुर्रीदार तथा फैली हुई होती हैं, जड़ व काण्ड से कई शाखाएँ निकलती हैं, पत्तियाँ संयुक्त व अण्डाकार होती हैं, जिनके अग्रभाग नुकीले होते हैं, फली बारीक छोटी ढाई सेण्टीमीटर लंबी चपटी होती है, जिसमें दो से लेकर पाँच तक वृक्काकार बीज होते हैं, इस वृक्ष का भूमिगत तना (काण्ड) तथा जड़ सुखाकर छिलका हटाकर या छिलके सहित अंग प्रयुक्त होता है, सामान्यत: मुलहठी ऊँचाई वाले स्थानों पर ही होती है, भारत में जम्मू-कश्मीर, देहरादून, सहारनपुर तक इसे लगाने में सफलता मिली है, वैसे बाजार में अरब, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान से आयी मुलहठी ही सामान्यत: पायी जाती है, पर ऊँचे स्थानों पर इसकी सफलता ने वनस्पति विज्ञानियों का ध्यान इसे हिमालय की तराई वाले खुश्क स्थानों पर पैदा करने की ओर आकर्षित किया है, बोटैनिकल सर्वे ऑफ इण्डिया इस दिशा में मसूरी, देहरादून फ्लोरा में इसे खोजने व उत्पन्न करने की ओर गतिशील है, इसी कारण अब यह विदेशी औषधि नहीं रही।
मुलहठी का परिचय
मुलहठी नाम से प्रचलित अंग इस वृक्ष की जड़ के लंबे टुकड़े का नाम है, इसमें मिलावट बहुत पायी जाती है, मुख्य मिलावट वेल्थ ऑफ इण्डिया के वैज्ञानिकों के अनुसार मचूरियन मुलहठी की होती है, जो काफी तिक्त होती है, एक अन्य जड़ जो काफी मात्रा में इस सूखी औषधी के साथ मिलाई जाती है, व्यापारियों की भाषा में एवस प्रिकेटोरियम (रत्ती, घुमची या गुंजा के मूल व पत्र) कहलाती है, इण्डियन जनरल ऑफ फार्मेसी के अनुसार वैज्ञानिक द्वय श्री हांडा व भादुरी ने भारतीय बाजारों में मुलहठी का सर्वेक्षण करने पर यही पाया कि इनमें से अधिकांश में मिलावट होती है, यह काफी पुरानी होने के कारण उपयोग योग्य भी नहीं रह जाती, भले ही स्वाद में मीठा होने के कारण वैद्य व अन्य ग्राहक उन्हें सही समझ बैठें।
असली मुलहठी अन्दर से पीली, रेशेदार व हल्की गंध वाली होती है, ताजी जड़ तो मधुर होती है, पर सूखने पर कुछ तिक्त और अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है, विदेशी आयातित औषधियों में मिश्री मुलहठी को सर्वोत्तम माना गया है, मुलहठी की अनुप्रस्थ काट करने पर उसके कटे हुए तल पर कुछ छल्ले स्पष्ट दिखाई देते हैं, जिन्हें कैम्बियम रिंग्स कहते हैं, बाहर की ओर पीताभ रंग का वल्कल और अन्दर की ओर पीला काष्ठी भाग होता है, वनौषधि निर्देशिका के लेखक के अनुसार उत्तम मुलहठी में किसी भी प्रकार की तिक्तता नहीं पायी जाती है, विद्वान लेखक लिखते हैं कि यदि मुलहठी को गंधकाम्ल (सल्फ्यूरिक एसिड 80 प्रतिशत वी.वी.) में भिगाया जाए तो वह शेष पीले रंग का हो जाता है, यह पहचान का एक आधार है।
ताजा मुलहठी में 50 प्रतिशत जल होता है जो सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत रह जाता है, इसका प्रधान घटक जिसके कारण यह मीठे स्वाद की होती है, ग्लिसराइज़िन होता है जो ग्लिसराइज़िक एसिड के रूप में विद्यमान होता है, यह साधारण शक्कर से भी 50 गुना अधिक मीठा होता है, यह संघटक पौधे के उन भागों में नहीं होता जो जमीन के ऊपर होते हैं, विभिन्न प्रजातियों में 2 से 14 प्रतिशत तक की मात्रा इसकी होती है।
ग्लिसराइज़िन के अतिरिक्त इसमें आएसो लिक्विरिटन (एक प्रकार का ग्लाइकोसाइड स्टेराइड इस्ट्रोजन) (गर्भाशयोत्तेजक हारमोन), ग्लूकोज़ (लगभग 3.5 प्रतिशत), सुक्रोज़ (लगभग 3 से 7 प्रतिशत), रेज़ीन (2 से 4 प्रतिशत), स्टार्च (लगभग 40 प्रतिशत), उड़नशील तेल (0.03 से 0.35 प्रतिशत) आदि रसायन घटक भी होते हैं।
मुलहठी के यौगिक इतने मीठे होते हैं कि 1:20000 की स्वल्पसांद्रता में भी इसकी मिठास पता लग जाती है, मुलहठी का पीला रंग ग्लाइकोसाइड-आइसोलिक्विरिटन के कारण है, यह 2.2 प्रतिशत की मात्रा में होता है एवं मुख में विद्यमान लार ग्रंथियों को उत्तेजित कर भोज्य पदार्थों के पाचन परिपाक में सहायक सिद्ध होता है, मुलहठी का घनसत्व काले या लाल रंग के टुकड़ों में मिलता है व इसका उत्पत्ति स्थान अफगान प्रदेश होने के कारण सामान्यत: वहीं की भाषा में 'रब्बुस्सूस' नाम से पुकारते हैं।
मुलहठी के औषधीय गुण
मुलेठी खांसी, गले की खराश, उदरशूल क्षयरोग, श्वासनली की सूजन तथा मिरगी आदि के इलाज में उपयोगी है, मुलेठी का सेवन आँखों के लिए भी लाभकारी है, इसमें जीवाणुरोधी क्षमता पाई जाती है, यह शरीर के अन्दरूनी चोटों में भी लाभदायक होता है, भारत में इसे पान आदि में डालकर प्रयोग किया जाता है, यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे कि विभिन्न प्रकार के एलर्जी और इंफेक्शन से लड़ने के लिए हमारा शरीर सक्षम हो पाता है।
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