गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

आंवला (आमलकी) के फायदे

आंवला (आमलकी) के फायदे 

आंवले के फल को लगभग सभी आयुर्वेद की संहिताओं में रसायन कहा गया है, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश, अष्टांग हृदय सभी शास्त्र आंवले को प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला मानते हैं, इसके अलावा आंवले को त्वचारोगहर, ज्वरनाशक, रक्तपित्त हर, अतिसार, प्रवाहिका, हृदय रोग आदि में बेहद लाभकारी माना गया है, आंवले का नियमित सेवन लंबी आयु की गारंटी भी देता है, आँवला एक फल देने वाला वृक्ष है, यह करीब २० फीट से २५ फुट तक लंबा झारीय पौधा होता है, यह एशिया के अलावा यूरोप और अफ्रीका में भी पाया जाता है, हिमालयी क्षेत्र और प्राद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं, इसके फूल घंटे की तरह होते हैं, इसके फल सामान्यरूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं, इसके फल हरे, चिकने और गुदेदार होते हैं, स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं।

संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में 'एँब्लिक माइरीबालन' या इण्डियन गूजबेरी तथा लैटिन में 'फ़िलैंथस एँबेलिका' कहते हैं, यह वृक्ष समस्त भारत में जंगलों तथा बाग-बगीचों में होता है, इसकी ऊँचाई 20 से 25 फुट तक, छाल राख के रंग की, पत्ते इमली के पत्तों जैसे, किंतु कुछ बड़े तथा फूल पीले रंग के छोटे-छोटे होते हैं, फूलों के स्थान पर गोल, चमकते हुए, पकने पर लाल रंग के फल लगते हैं, जो आँवला नाम से ही जाने जाते हैं, वाराणसी का आँवला सब से अच्छा माना जाता है, यह वृक्ष कार्तिक में फलता है, आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ हैं, इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक है, चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकनेवाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आँवला सबसे प्रधान है, प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), वयस्था (अवस्था को बनाए रखनेवाला) तथा धात्री (माता के समान रक्षा करनेवाला) कहा है।

परिचय

इसके फल पूरा पकने के पहले व्यवहार में आते हैं, वे ग्राही (पेटझरी रोकनेवाले), मूत्रल तथा रक्तशोधक बताए गए हैं, कहा गया है ये अतिसार, प्रमेह, दाह, कँवल, अम्लपित्त, रक्तपित्त, अर्श, बद्धकोष्ठ, वीर्य को दृढ़ और आयु में वृद्धि करते हैं, मेधा, स्मरणशक्ति, स्वास्थ्य, यौवन, तेज, कांति तथा सर्वबलदायक औषधियों में इसे सर्वप्रधान कहा गया है, इसके पत्तों के क्वाथ से कुल्ला करने पर मुँह के छाले और क्षत नष्ट होते हैं, सूखे फलों को पानी में रात भर भिगोकर उस पानी से आँख धोने से सूजन इत्यादि दूर होती है, सूखे फल खूनी अतिसार, आँव, बवासरी और रक्तपित्त में तथा लोहभस्म के साथ लेने पर पांडुरोग और अजीर्ण में लाभदायक माने जाते हैं, आँवला के ताजे फल, उनका रस या इनसे तैयार किया शरबत शीतल, मूत्रल, रेचक तथा अम्लपित्त को दूर करनेवाला कहा गया है, आयुर्वेद के अनुसार यह फल पित्तशामक है और संधिवात में उपयोगी है, ब्राह्मरसायन तथा च्यवनप्राश ये दो विशिष्ट रसायन आँवले से तैयार किए जाते हैं, प्रथम मनुष्य को नीरोग रखने तथा अवस्थास्थापन में उपयोगी माना जाता है तथा दूसरा भिन्न-भिन्न अनुपानों के साथ भिन्न-भिन्न रोगों जैसे हृदयरोग, वात, रक्त, मूत्र तथा वीर्यदोष, स्वरक्षय, खाँसी और श्वासरोग में लाभदायक माना जाता है।

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार आँवला में विटैमिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है, इतनी अधिक मात्रा में कि साधारण रीति से मुरब्बा बनाने में भी सारे विटैमिन का नाश नहीं हो पाता, संभवत: आँवले का मुरब्बा इसीलिए गुणकारी है, आँवले को छाँह में सुखाकर और कूट पीसकर सैनिकों के आहार में उन स्थानों में दिया जाता है जहाँ हरी तरकारियाँ नहीं मिल पाती, आँवले के उस अचार में जो आग पर नहीं पकाया जाता विटैमिन-सी प्राय: पूर्ण रूप से सुरक्षित रह जाता है और यह अचार, विटैमिन-सी की कमी में खाया जा सकता है।

आँवला एक छोटे आकार और हरे रंग का फल है, इसका स्वाद खट्टा होता है, आयुर्वेद में इसके अत्यधिक स्वास्थ्यवर्धक माना गया है, आँवला विटामिन 'सी' का सर्वोत्तम और प्राकृतिक स्रोत है, इसमें विद्यमान विटामिन 'सी' नष्ट नहीं होता, यह भारी, रुखा, शीत, अम्ल रस प्रधान, लवण रस छोड़कर शेष पाँचों रस वाला, विपाक में मधुर, रक्तपित्त व प्रमेह को हरने वाला, अत्यधिक धातुवर्द्धक और रसायन है, यह 'विटामिन सी' का सर्वोत्तम भण्डार है, आँवला दाह, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है, वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है, सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है, विटामिन सी ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से नष्ट हो जाता है, लेकिन आँवले में विद्यमान विटामिन-सी कभी नष्ट नहीं होता, हिन्दू मान्यता में आँवले के फल के साथ आँवले का पेड़ भी पूजनीय है, माना जाता है कि आँवले का फल भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है, इसीलिए अगर आँवले के पेड़ के नीचे भोजन पका कर खाया जाये तो सारे रोग दूर हो जाते हैं |

आँवला की खेती

एशिया और यूरोप में बड़े पैमाने पर आंवला की खेती होती है, आंवला के फल औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, इसलिए इसकी व्यवसायिक खेती किसानों के लिए लाभदायक होती है, भारत की जलवायु आंवले की खेती के लिहाज से सबसे उपयुक्त मानी जाती है, उत्तरप्रदेश का प्रतापगढ़ जनपद आवले के लिए प्रसिद्ध है, इसके उपरान्त ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्कॉटलैंड, नॉर्वे आदि देशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है, इसके फलों को विकसित होने के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक माना जाता है, हालांकि आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है, कई बार आँवला में फल नहीं लगते जैसी समस्या आती है, मगर आवश्यक यह है की जहाँ आँवला का पेड़ हो उसके आसपास दूसरे आँवले का पेड़ होना भी आवश्यक है तभी उसमें फल लगते हैं, आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है, कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें शीघ्र फल लग जाते हैं।

कम्पोस्ट खाद का उपयोग कर भारी मात्रा में फल पाए जा सकते हैं, आंवले के फल विभिन्न आकार के होते हैं, छोटे फल बड़े फल की अपेक्षा ज्यादा तीखे होते हैं, आंवला के पौधे और फल कोमल प्रकृति के होते हैं, इसलिए इसमें कीड़े जल्दी लग जाते हैं, आंवले की व्यवसायिक खेती के दौरान यह ध्यान रखना होता है, कि पौधे और फल को संक्रमण से रोका जाए, शुरुआती दिनों में इनमें लगे कीड़ों और उसके लार्वे को हाथ से हटाया जा सकता है, पोटाशियम सल्फाइड कीटाणुओं और फफुंदियों की रोकथाम के लिए उपयोगी माना जाता है।

रासायनिक संघटन

आँवले के 100 ग्राम. रस में 921 मि.ग्रा. और गूदे में 720 मि.ग्रा. विटामिन सी पाया जाता है, आर्द्रता 81.2, प्रोटीन 0.5, वसा 0.1, खनिज द्रव्य 0.7, कार्बोहाइड्रेट्स 14.1, कैल्शियम 0.05, फॉस्फोरस 0.02 प्रतिशत, लौह 1.2 मि.ग्रा., निकोटिनिक एसिड 0.2 मि.ग्रा. पाए जाते हैं, इसके अलावा इसमें गैलिक एसिड, टैनिक एसिड, शर्करा (ग्लूकोज), अलब्यूमिन, काष्ठौज आदि तत्व भी पाए जाते हैं।

आँवला के लाभ

आँवला दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है, वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है, सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है, दाँत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिर दर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, रक्ताल्पता, बल-वीर्य में कमी, बेवक्त बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होना, यकृत की कमजोरी व खराबी, स्वप्नदोष, धातु विकार, हृदय विकार, फेफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय, दौर्बल्य, पेट कृमि, उदर विकार, मूत्र विकार आदि अनेक व्याधियों के घटाटोप को दूर करने के लिए आँवला बहुत उपयोगी है।

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