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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
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रक्त चन्दन के फायदे
चंदन की बात आते ही नाक में भीनी-भीनी खुशबू आनी शुरू हो जाती है, जिससे पूरा वातावरण पवित्र जैसा महसूस होने लगता है, पर शायद आपको पता नहीं कि चंदन कितने प्रकार के होते हैं, एक तो श्वेत, रक्त यानि लाल और पीत यानि पीला चंदन, वैसे तो पूजा के कार्य में चंदन के इस्तेमाल के बारे में तो सबको पता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सभी चंदन के प्रकारों की तरह रक्त चंदन का भी आयुर्वेद में औषधी के रूप में अनगिनत तरीकों से उपयोग किया जाता है, अगर नहीं तो चलिये इसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं और अपना ज्ञान बढ़ाते हैं।
rakt chandan |
रक्त चंदन क्या है ?
प्राचीन आयुर्वेदीय निघण्टुओं व संहिताओं में चन्दन के तीन भेदों का वर्णन मिलता है, सुश्रुत संहिता के पटोलादि, सारिवादि तथा प्रिंग्वादि गणों में रक्त चन्दन का वर्णन प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त भावप्रकाश निघण्टु में रक्त, श्वेत तथा पीत तीन प्रकार के चन्दनों का उल्लेख किया गया है।
रक्तचंदन 8 से 11 मी ऊँचा, मध्यमाकारीय, सघन शाखा प्रशाखायुक्त, पर्णपाती वृक्ष होता है, इसकी शाखाएँ धूसर रंग की होती हैं, इसकी छाल 1-1.5 सेमी मोटी, कृष्णाभ भूरे रंग की तथा क्षत होने पर गहरे रक्तवर्णी निर्यास युक्त होती है, इसकी अन्तकाष्ठ गहरे रक्तवर्ण या गहरे बैंगनी वर्ण की होती है, इसके पत्ते संयुक्त, 10 से 18 सेमी लम्बे, अण्डाकार, गोल तथा प्रत्येक पर्णवृन्त पर प्राय: 3-3 या 5-5 पत्रक होते हैं, इसके फूल 2 सेमी लम्बे, सुगन्धित, द्वि-लिंगी, पीत रंग के, छोटे, लगभग 5 मिमी लम्बे पुष्पवृंत पर लगे होते हैं, इसकी फली 3.8 से 5 सेमी व्यास की होती है, बीज संख्या में 1-2, वृक्काकार, 1-1.5 सेमी लम्बे, रक्ताभ भूरे रंग के, चिकने तथा चर्मिल होते हैं, इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी से मई तक होता है।
अन्य भाषाओं में रक्तचंदन के नाम
रक्तचंदन का वानास्पतिक नाम टेरोकार्पस सैन्टेलिनस (pterocarpus santalinus) होता है, इसका कुल फैबेसी (fabaceae) होता है और इसको अंग्रेजी में रैड सैनडल वुड (red sandal wood) कहते हैं, चलिये अब जानते हैं कि रक्तचंदन और किन-किन नामों से जाना जाता है।
- Sanskrit - रक्तचंदन, रक्ताङ्ग, तिलपर्ण, रक्तसार, प्रवालफल, लोहित चंदन, मलयज
- Hindi - लाल चंदन, रक्तचंदन
- Odia - रक्तचंदन, इन्द्रो चन्दोनो
- Kannada - रक्तशंदन, होने
- Bengali - रक्तचंदन
- Gujarati - रतांजली
- Telugu - रक्तचंदनम
- Tamil - शेन चंदनम, अट्टी, सिवप्पु चंदनम
- Nepali - रक्तचंदन
- Punjabi - लाल चन्दन
- Marathi - रक्तचंदन, लाल चन्दन
- Malayalam - रक्तशंदनम, पत्रान्गम, तिलपर्णी
- English - रूबीवुड, इण्डियन सैनडलवुड
- Arbi - संदले अहमर, सैन्डुलम्र, उन्डम
- Persian - संदले सुर्ख, बुकम।
रक्तचंदन का औषधीय गुण
रक्तचंदन किन-किन बीमारियों के लिए इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, इसके बारे में जानने के लिए सबसे पहले लाल चंदन के औषधीय गुणों के बारे में जान लेते हैं :-
- लाल चन्दन, मधुर, कड़वा, शीत, लघु, रूखा, कफपित्त से आराम दिलाने वाला, चक्षुष्य, वृष्य, रक्षोघ्न, बलकारक होता है।
- यह उल्टी, तृष्णा या प्यास, रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहने की बीमारी), ज्वर या बुखार, व्रण या घाव, विष, कास या खांसी, जन्तुनाशक होता है।
- इसकी लकड़ी स्तम्भक यानि रक्त को रोकने में मददगार, बलकारक, ज्वरघ्न (ज्वर को कम करने वाला), कृमिघ्न (कृमि को मारने वाला), नियतकालिक व्याधिहर, स्वेदजनन (पसीने को उत्पन्न करने वाला ) तथा विषनाशक होता है।
- यह उद्वेष्टनरोधी, सूत्रकृमिनाशक, शोथरोधी या सूजन को कम करने वाला, जोड़ो के सूजन को कम करने वाला, केन्द्रीय तंत्रिकातंत्र अवसादक, पुंस्त्वरोधी, जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टिरीयल), ज्वरघ्न तथा अनूर्जतारोधी होता है।
रक्त चंदन के फायदे और उपयोग
रक्त चंदन त्वचा संबंधी और पेट संबंधी समस्याओं के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ दर्दनिवारक के रूप में भी काम करता है, लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है, चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं :-
रक्तचंदन सिरदर्द में फायदेमंद है
दिन भर की थकान के कारण सिरदर्द से परेशान रहते हैं, तो रक्तचन्दन, उशीर, मुलेठी, बला, व्याघनखी तथा कमल इन 6 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर दूध में पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है, इसके अलावा लालचन्दन, नमक तथा सोंठ को जल में घिसकर मस्तक पर लेप करने से सिर दर्द मिटता है।
रक्तचंदन माइग्रेन या आधासीसी के दर्द में लाभदायक है
रक्त चन्दन की अन्तकाष्ठ को पीसकर मस्तक में लगाने से आधीसीसी या माइग्रेन की वेदना से आराम मिलता है।
रक्तचंदन आँखों के रोगों के इलाज में लाभकारी है
- आजकल दिन भर कंप्यूटर पर काम करने के कारण तरह-तरह की आँख की समस्याएं होती है, जैसे- आँख दर्द, सूजन आदि, इन सब समस्याओं में रक्तचंदन का इस्तेमाल करने से जल्दी आराम मिलता है, यहां तक कि मोतियाबिंद में भी रक्तचंदन का उपयोग करने से फायदा मिलता है।
- लालचंदन को जल, शहद, घी अथवा तैल में घिसकर नेत्रों में लगाने से एक सप्ताह में जीर्ण काला मोतिया रोग में लाभ होता है।
- चन्दन 1 भाग, सेंधानमक 2 भाग, हरड़ 3 भाग तथा पलाश पत्ते का रस 4 भाग इन सबको पीसकर कर अंजन या काजल की तरह बनाकर प्रयोग करने से नेत्र रोगों में लाभ होता है।
- लाल चंदन के काष्ठीय भाग को जल में घिसकर, नेत्र के बाहर चारों तरफ लगाने से आँख के सूजन में लाभ होता है।
रक्तचंदन दांत दर्द में फायदेमंद है
दांत दर्द की समस्या तो आम होती है, लालचंदन की अन्तकाष्ठ को पीसकर दांतों पर मलने से दांत दर्द से जल्दी आराम मिलता है।
रक्तचंदन हिक्का की परेशानी में लाभदायक है
अगर आप बार-बार हिक्का होने से परेशान रहते हैं, तो लालचन्दन को दूध में घिसकर 1-2 बूंद नाक में डालने से हिक्का बन्द हो जाती है।
रक्तचंदन पित्तातिसार के इलाज में लाभकारी है
दारुहरिद्रा, धमासा, बेलगिरी, सुगन्धबाला तथा लाल चन्दन (2-4 ग्राम चूर्ण) अथवा लाल चन्दन, सुंधबाला, नारगमोथा, भूनिम्ब तथा धमासा चूर्ण का सेवन करने से आमदोष का पाचन होकर पित्तातिसार में लाभ होता है।
रक्तचंदन रक्तातिसार में फायदेमंद है
लालचन्दन का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिली काढ़े में मधु मिलाकर पिलाने से रक्तातिसार बंद होता है।
रक्तचंदन उल्टी के कष्ट में लाभदायक है
अगर आपके दिनचर्या के कारण उल्टी की समस्या आम बीमारी बनती जा रही है, तो लाल चंदन की लकड़ी के भाग को मधु में घिसकर चटाने से उल्टी बंद हो जाती है।
रक्तचंदन प्रवाहिका के इलाज में लाभकारी है
दस्त को रोकने में अगर कोई इलाज काम नहीं कर रहा है, तो लालचन्दन का काढ़ा बनाकर पीने से प्रवाहिका से आराम मिलता है।
रक्तचंदन रक्तार्श में फायदेमंद है
- अगर बवासीर की अवस्था गंभीर हो गई है और उससे खून निकलने लगा है, तो अनार का छिल्का, लालचंदन, चिरायता, धमासा तथा सोंठ का काढ़ा बनाकर 10 से 20 मिली काढ़े में गाय का घी मिलाकर पीने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में लाभ होता है।
- इसके अलावा लाल चन्दन के पत्ते अथवा छाल से बने काढ़े (20 से 40 मिली) का सेवन करने से अर्श या बवासीर में लाभ होता है।
रक्तचंदन प्रदर या सफेद पानी के इलाज में लाभदायक है
रक्त चन्दन आदि द्रव्यों से बने पुष्यानुग चूर्ण को खाने से प्रदर या सफेद पानी में अत्यन्त लाभ होता है।
रक्तचंदन भग्न के उपचार में लाभकारी है
मंजिष्ठा, मुलेठी, लाल चन्दन तथा शालि चावल को पीसकर शतधौत घी में मिलाकर भग्न (हड्डी टूटना) पर लेप करने से लाभ होता है।
रक्तचंदन व्यंग के उपचार में फायदेमंद है
लालचंदन, मंजिष्ठा, कूठ, पठानी लोध्र, फूल प्रियंगु, बरगद के अंकुर तथा मसूर की दाल को पीसकर चेहरे पर लेप करने से व्यंग (झाँई) का शमन होता है तथा मुँह की रौनक बढ़ने लगती है।
रक्तचंदन विसर्प या हर्पिज़ के इलाज में लाभकारी है
कमल नाल, लालचन्दन, लोध्र, खस, कमल, नीलकमल, अनन्तमूल, आमलकी और हरीतकी को दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज विसर्प रोग में लाभ होता है, इसके अलावा समान मात्रा में लाल चंदन तथा नीलकमल का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिली काढ़े को पिलाने से विसर्प में लगाने से हर्पिज का घाव जल्दी ठीक होता है।
रक्तचंदन विद्रधि यानि पेट के फोड़ा को ठीक करने में फायदेमंद है
- पेट में फोड़ा होने से जो कष्ट होता है, उसके इलाज में रक्तचंदन का प्रयोग करने से जल्दी राहत मिलने लगती है, श्वेत और लाल चन्दन को दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज विद्रधि से आराम मिलता है।
- इसके अलावा लाल चन्दन, मंजिष्ठा, हरिद्रा, मुलेठी और गेरू इन 5 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर दूध में पीसकर लेप करने से रक्तज विद्रधि एवं आगन्तुज विद्रधि में लाभ होता है।
रक्तचंदन आग से जले घाव के इलाज में सहायक है
वंशलोचन, प्लक्ष, लाल चन्दन, गेरू और गुडूची इन 5 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर, घी में मिलाकर लेप करने से आग से जले घाव को ठीक करने में जल्दी राहत मिलती है।
रक्तचंदन व्रण या घाव को ठीक करने में लाभदायक है
अगर घाव ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है, तो लाल चंदन की छाल की त्वचा को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
रक्तचंदन त्वचा संबंधी बीमारी में फायदेमंद है
रक्त चन्दन की लकड़ी के भाग को पीसकर, गुनगुना करके लगाने से त्वचा संबंधी किसी भी रोगों में लाभ मिलता है।
रक्तचंदन पित्तज शोध या सूजन को ठीक करने में लाभकारी है
मुलेठी, लालचन्दन, मूर्वा, नरसल मूल, पद्माख, खस, सुगन्धवाला तथा कमल इन द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर लेप करने से पित्तजशोथ में लाभ होता है।
रक्तचंदन बुखार के लक्षणों से आराम दिलाने में लाभदायक है
बुखार होने पर शरीर में दर्द, जलन जैसे लक्षणों से आराम दिलाने में रक्तचंदन का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है :-
- लाल चन्दन, वासा, नागरमोथा, गुडूची तथा द्राक्षा से बने 20 से 40 मिली हिम को पीने से बुखार से आराम मिलता है।
- लाल चंदन, धनिया, सोंठ, खस, पीपल तथा मोथा इनसे बने काढ़ा (20 से 40 मिली) में मधु तथा मिश्री मिलाकर पीने से तृतीयक ज्वर में लाभ होता है।
- लाल चंदन के पत्ते तथा छाल का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिली मात्रा में पीने से बुखार से राहत मिलती है।
- लाल चंदन को घिसकर पानी में मिलाकर पिलाने से ज्वर तथा ज्वर के कारण होने वाली दाह से आराम मिलता है।
रक्तचंदन रक्तपित्त के इलाज में फायदेमंद है
समान मात्रा में उशीर, कालीयक, पठानी लोध्र, पद्मकाठ, फूलप्रियंगु, कायफल त्वक, शंख भस्म, स्वर्ण गैरिक तथा सब के बराबर लाल चंदन अथवा उशीर, कालीयक आदि को अलग-अलग समान मात्रा में लाल चन्दन के साथ चूर्ण बनाकर 1-3 ग्राम की मात्रा में लेकर चावल के धोवन में घोल कर शर्करा मिला कर पीने से रक्तपित्त, अस्थमा / दम फूलना, अत्यधिक प्यास तथा जलन से जल्दी आराम मिलता है।
रक्तचंदन का उपयोगी भाग
आयुर्वेद के अनुसार रक्तचंदन का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है :-
- अंतकाष्ठ
- पत्ता
- छाल
- फल।
रक्तचंदन का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए ?
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए रक्तचंदन का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें, चिकित्सक के सलाह के अनुसार 3 से 5 ग्राम चूर्ण और 20 से 40 मिली काढ़ा ले सकते हैं।
रक्तचंदन कहां पाया या उगाया जाता है ?
यह दक्षिणी भारत में मुख्यत दक्षिण-आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक, उत्तरी तमिलनाडू, अण्डमान एवं महाराष्ट्र के शुष्क, पहाड़ी स्थानों में लगभग 150 से 900 मी तक की ऊँचाई पर पाया जाता है, कुछ विद्वान् रक्त-चन्दन के स्थान पर कुचन्दन या पंत्राग को ग्रहण करते है, परन्तु यह तीनों आपस में बिल्कुल भिन्न हैं, यद्यपि रक्त चन्दन तथा पंत्राग के वृक्षों में कुछ समानता पाई जाती है तथा कई स्थानों पर चन्दन के स्थान पर पंत्राग की लकड़ी का औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है, तथापि यह दोनों आपस में बिल्कुल भिन्न है।
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