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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
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नाकुली के फायदे
नाकुली को ईशरजड़, ईश्वरजड़, इसरॉल भी कहते हैं, भारत में कई स्थानों पर सांप के काटने का इलाज नाकुली के पत्ते और जड़ों से किया जाता है, यह एक जड़ी-बूटी है, इसके अलावा भी नाकुली के कई सारे औषधीय गुण हैं, क्या आप यह जानते हैं कि आधासीसी, दांत दर्द, गले की बीमारियों में नाकुली के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं, इतना ही नहीं पेट के रोग, हैजा, कुष्ठ रोग और जोड़ों के दर्द में भी नाकुली के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।
nakuli plant |
आयुर्वेद में नाकुली के गुण के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं, जो आपको जानना जरूरी है, सांप के काटने के इलाज की खूबी के अतिरिक्त आप फोड़े, सूजन, टाइफाइड, ब्लड प्रेशर आदि में भी नाकुली के औषधीय गुण के फायदे ले सकते हैं, आइए यहां एक-एक कर जानते हैं कि नाकुली के सेवन या उपयोग करने से कितनी सारी बीमारियों में फायदा होता है, साथ ही यह भी जानते हैं कि नाकुली से क्या-क्या नुकसान हो सकता है।
नाकुली क्या है ?
नाकुली झाड़ीनुमा लता होती है, इसके तने मोटे, गोल, चिकने होते हैं, तने में कपूर जैसा गंध होता है, इसके तने हरे और सफेद रंग के होते हैं, इसके पत्ते सीधे, हरे रंग के और आगे के भाग पर नुकीले होते हैं, पत्ते पांच शिरा युक्त होते हैं, इसके फूल हरे-सफेद या हल्के बैंगनी रंग के होते हैं, इसके फल गोलाकार होते हैं, नाकुनी के बीज अनेक, त्रिकोणीय या त्रिकोणाकार-अण्डाकार होते हैं, इसकी जड़ गांठदार, शाखायुक्त, हल्के बादामी रंग की और लम्बी होती है, नाकुली के पौधों में फूल जुलाई से अगस्त और फल अगस्त से फरवरी तक होता है।
यहां नाकुली के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है, ताकि आप नाकुली के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं।
अन्य भाषाओं में नाकुली के नाम
नाकुली का वानस्पतिक नाम ऐरिस्टोलोकिआ इन्डिका है और यह ऐरिस्टोलोकिएसी कुल का है, इसके अन्य ये भी नाम हैं :-
- Hindi - ईशरजड़, ईश्वरजड़, इसरॉल
- English - इण्डियन बर्थवर्ट
- Sanskrit - नाकुली, गंधनाकुली, महायोगेश्वरी, ईश्वरी, गरलिका, अर्कजड़
- Oriya - गोपोकोरोनि, फोनियोरी
- Urdu - शपेसन्द
- Kannada - सन्नजली, इशुवारिवेलु
- Gujarati - निर्वेल, सपसन
- Tamil - इचचुराजड़ी, पेरुमारिन्दु
- Telugu - दुलागोवेला, गोविला
- Bengali - ईशरजड़
- Nepali - ईश्वरजड़
- Malayalam - ईश्वराजड़ा, करलायाम
- Marathi - सपसण
- Arabic - जरवन्दे हिन्दी
- Persian - जरवन्दे हिन्दी।
नाकुली के औषधीय गुण
नाकुली के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैं :-
नाकुली तिक्त, कटु, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफवातशामक, विषघ्न, लूता (मकड़ा), वृश्चिक (बिच्छू), चूहा, सर्प आदि के विष-प्रभाव को नष्ट करने वाली होती है, यह ज्वर, कृमिरोग, व्रण, कास, ग्रहरोग, वातव्याधि और जालगर्दभ नाशक होती है, इसका पौधा आर्तवस्राववर्धक, गर्भस्रावकर, आमवातरोधी, ज्वरघ्न और मूत्रल होता है, इसके शुष्क जड़ और प्रकन्द उदरोत्तेजक, तिक्त और बलकारक होते हैं, इसके पत्ते क्षुधावर्धक, बलकारक और ज्वरघ्न होते हैं।
नाकुली के फायदे और उपयोग
नाकुली के फायदे, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैं :-
नाकुली अधकपारी में फायदेमंद है
सर्पगन्धा और नाकुली की जड़ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को दो से तीन सप्ताह तक सेवन करें, इससे माइग्रेन में लाभ होता है।
नाकुली दांत दर्द में फायदेमंद है
दांत में दर्द होने पर आप नाकुली के औषधीय गुण से फायदा ले सकते हैं, नाकुली की जड़ लें, इससे दातुन करें या दांतों से चबाएं, इससे दांत का दर्द ठीक होता है।
नाकुली घेंगा रोग में फायदेमंद है
घेंघा रोग में भी नाकुली का औषधीय गुण फायदेमंद होता है, इसके लिए आप नाकुली, नमक और सोंठ को पानी में घिस लें, इससे बीमार अंग पर लेप करें, इससे लाभ होता है।
नाकुली से पेट की बीमारियों का इलाज होता है
- 3 भाग नाकुली और 2 भाग काली मिर्च को पीसकर पेट पर लगाएं, इससे पेट की बीमारियों में फायदा होता है।
- 5 से 10 मिली नाकुली के पत्ते के रस को पिलाने से जलोदर रोग में लाभ होता है।
नाकुली से हैजा का इलाज होता है
हैजा में नाकुली के इस्तेमाल से फायदा होता है, इसके लिए नाकुली के पत्ते का रस निकाल लें, इसे पेट पर लेप करें, इससे हैजा में लाभ होता है।
नाकुली जोड़ों के दर्द में फायदेमंद है
जोड़ों में दर्द हो तो नाकुली का उपयोग बहुत लाभ पहुंचाता है, इसके लिए आपको ईश्वरी की जड़ को पीस लेना है, इस पेस्ट को दर्द वाले स्थान पर लगाना है, बेहतर परिणाम के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
नाकुली कुष्ठ रोग का इलाज करता है
कुष्ठ रोग में भी नाकुली के इस्तेमाल से लाभ होता है, 1 से 2 ग्राम नाकुली की सूखी जड़ का चूर्ण बना लें, इसमें मधु मिलाकर प्रयोग करें, इससे सफेद दाग आदि कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
नाकुली फोड़े के इलाज में फायदेमंद है
तीन भाग नाकुली के तने की छाल और एक भाग हरिद्रा को मिला लें, इसे पीसकर एलर्जी के कारण होने वाले फफोलों पर लेप करें, इससे लाभ मिलता है।
नाकुली सूजन में फायदेमंद है
लाल पुनर्नवा, कनेर के पत्ते, पलाश, इसरजड़, शालपर्णी, पृश्निपर्णी आदि द्रव्यों को पीसकर गुनगुना कर लें, इसका लेप करने से सूजन में लाभ होता है।
नाकुली टाइफाइड बुखार में लाभदायक है
टाइफाइड बुखार में भी ईसरजड़ के सेवन से लाभ होता है, रोगी 1 ग्राम जड़ के चूर्ण का सेवन करे, इससे टाइफाइड में लाभ होता है।
नाकुली हाई ब्लडप्रेशर में लाभदायक है
हाई ब्लडप्रेशर में ईश्वरजड़ का सेवन करें, इससे बहुत फायदा होता है, 1 से 2 ग्राम नाकुली की जड़ चूर्ण में मधु मिला लें, इसे दो से तीन सप्ताह तक प्रयोग करें, इससे हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।
नाकुली सांप के डसने पर फायदेमंद है
- नाकुली सांप के डसने पर राहत पहुंचाने वाली सबसे अच्छी औषधि मानी जाती है, आप सांप के डसने के बाद तुरंत थोड़ा-सा विष-युक्त खून निकाल लें, इसके बाद गुंजा और नाकुली की जड़ को पीसकर उस स्थान पर लेप करें।
- काले सांप के काटने पर काटे हुए स्थान पर थोड़ा खून निकाल लें, इसके बाद गुंजा और नाकुली या तीक्ष्ण जड़विष आदि को पीसकर लेप करें, इससे लाभ होता है, इससे सांप के डसने का उत्तम इलाज होता है।
- नाकुली की जड़ और 7 काली मरिच को पीसकर सांप के काटने वाले स्थान पर लगाएं, इससे सांप का विष का असर कम होता है और विष से होने वाला नुकसान जैसे- दर्द, जलन आदि से आराम मिलता है।
- 3 नाकुली के पत्ते में 7 काली मिर्च पीसकर पिलाएं, इससे सांप के डसने से होने वाली जलन, दर्द आदि प्रभाव ठीक होता है।
नाकुली के उपयोगी भाग
नाकुली के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता है :-
- पत्ते
- जड़
- फल
- बीज।
नाकुली का इस्तेमाल कैसे करें ?
नाकुली को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए :-
- चूर्ण - 1 से 2 ग्राम
- रस - 5 से 10 मिली
यहां नाकुली के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है, ताकि आप नाकुली के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए नाकुली का सेवन करने या नाकुली का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
नाकुली कहां पाया या उगाया जाता है ?
नाकुली भारत में बंगाल से दक्कन प्रायद्वीप एवं कोंकण से दक्षिण की ओर पाया जाता है, विश्व में यह साधारणतया नेपाल की निचली पहाड़ियों पर, बांग्लादेश एवं श्रीलंका में लगभग 900 मीटर की ऊँचाई पर होता है।
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