गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

वासा के फायदे | vaasa ke fayde

वासा के फायदे 

वासा के बारे में कौन नहीं जानता है, असल में दादी-नानी के जमाने से वासा का प्रयोग सर्दी-जुकाम के इलाज के लिए घरेलू नुस्ख़ों के तौर पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता आ रहा है, आयुर्वेद में भी वासा का औषधि के रुप में विशिष्ट स्थान है, वासा को अडूसा भी कहते हैं, आयुर्वेद में कहा जाता है कि वासा वात, पित्त और कफ को कम करने में बहुत काम आता है, इसके अलावा वासा सिरदर्द, आँखों की बीमारी, पाइल्स, मूत्र रोग जैसे अनेक बीमारियों में बहुत फायदेमंद साबित होता है, तो चलिये वासा किन-किन बीमारियों में लाभदायक है, इसके बारे में जानने से पहले वासा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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वासा क्या है ? 

आचार्य चरक ने वासा को रक्तपित्त की चिकित्सा में श्रेष्ठ माना है, चरकसंहिता में दशेमानि में वासा का उल्लेख नहीं है, वासा का पत्ता शाक कफपित्त को कम करने वाला होता है, नेत्ररोगों के साथ अश्मरी (पथरी), शर्करा (ब्लड ग्लूकोज), कुष्ठ, ग्रहणी, योनिरोग और वात संबंधी बीमारियों में अन्य द्रव्यों के साथ वासा का प्रयोग मिलता है, सुश्रुत-संहिता में क्षारक्रिया में इसकी गणना की गई है, इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है, जो निम्न प्रकार हैं।

श्वेत वासा - अडूसा का पौधा झाड़ीदार होता है, इसके फूल सफेद रंग के होते हैं, इसकी मंजरियाँ फरवरी से मार्च में आती हैं, इसकी फली 18 से 22 मि.मी. लम्बी, 8 मि.मी. चौड़ी, रोम वाली होती है तथा प्रत्येक फली में चार बीज होते हैं।

रक्त वासा - ग्रैप्टोफायलम् पिक्टम् इसके फूल गहरे लाल रंग के होते हैं।

कृष्ण वासा - जेन्डारुसा वल्गैरिस इस पौधे का पूरा भाग बैंगनी रंग का होता है, कई स्थानों पर इसका प्रयोग कटसरैया में मिलावट के लिए किया जाता है,

ऊपर वर्णित वासा की प्रजातियों के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।

क्षुद्रवासा - यह लगभग 3 से 4 मी. ऊँचा शाखा-प्रशाखायुक्त क्षुप या झाड़ी होता है, फूल सफेद रंग के होते हैं, कई जगहों पर वासा के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है, इसके पत्ते, जड़ तथा फूल का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है, पत्ते वमनरोधी तथा रक्तस्तम्भक होते है, इसका पौधा कफ करने वाला तथा बलकारक होता है, फूलों का प्रयोग आँखों की बीमारियों की चिकित्सा में किया जाता है।

अडूसा वातकारक, कफपित्त कम करने वाला, स्वर के लिए उत्तम, हृदय की बीमारी, रक्त संबंधी बीमारी, तृष्णा या प्यास, श्वास या सांस संबंधी, कास, ज्वर, वमन, प्रमेह, कोढ़ तथा क्षय रोग में लाभप्रद है, श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है, यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है तथा सांस-नलिकाओं का कम, परन्तु स्थायी प्रसार करता है, श्वास नलिकाओं के फैल जाने से दमे के रोगी का सांस फूलना कम हो जाता है।

कफ के साथ यदि रक्त भी आता हो तो वह भी बंद हो जाता है, इस प्रकार यह श्लेष्म् या कास, कंठ्य एवं श्वासहर है, यह रक्तशोधक एवं रक्तस्तम्भक है, क्योंकि यह छोटी रक्तवाहनियों को संकुचित करता है, यह प्राणदानाड़ी को अवसादित कर रक्त भार को कुछ कम करता है, इसकी पत्त्तियां सूजन कम करने वाला, वेदना कम करने वाला, जंतु को काटने पर तथा कुष्ठ से राहत दिलाने में मदद करता है, यह मूत्र जनन, स्वेदजनन तथा कुष्ठघ्न है, नवीन कफ रोगों की अपेक्षा इसका प्रयोग पूराने कफ रोगों में अधिक लाभकारी होता है।

कृष्णवासा - काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म, वामक व रेचक होता है एवं बुखार, बलगम बीमारी से राहत दिलाने तथा अर्दित आदि रोगों में लाभकारी होता है।

रक्त वासा - इसकी पत्तियाँ मृदुकारी तथा सूजन कम करने में मदद करता है।

यह ग्राम धनात्मक एवं ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं के प्रति सूक्ष्मजीवीनाशक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है, यह एंटीकोलीनेस्टेरेज क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।

अन्य भाषाओं में वासा के नाम

वासा का पौधा का वानस्पतिक नाम एढैटोडा जेलनिका है, वासा का कुल ऐकेन्थेसी है, वासा को अंग्रेजी में मालाबार नट कहते हैं, भारत के विभिन्न प्रांतों में वासा को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।

  • Sanskrit - वासक, वासिका, वासा, सिंहास्य, भिषङ्माता, सिंहिका, वाजिदन्ता, आटरूषक, अटरूष, वृष, ताम्र, सिंहपर्ण, वैद्यमाता
  • Hindi - अडूसा, अडुस्, अरुस, बाकस, बिर्सोटा, रूसा, अरुशा
  • Urdu - अरूसा 
  • Oriya - बासोंगो 
  • Uttrakhand - वासिग, बसिंगा 
  • Konkani - अडोलसो 
  • Kannada - आडुसोगे, कूर्चीगिड़ा, पावटे 
  • Gujrati - अरडुसो 
  • Tamil - एढाटोडी 
  • Telugu - आड्डा सारामू 
  • Bengali - वासक, बाकस 
  • Nepali - असुरू 
  • Panjabi - भेकर 
  • Marathi - अडुलसा, अडुसा, अटारूशाम 
  • Malayalam - आटडालोटकम् 
  • English - लायन्स मजल, स्टालिऔन टूथ, वासका 
  • Persian - बनशा।

वासा के फायदे 

वासा के गुण और फायदों के बारे में आप अनजान हैं, वासा किन-किन बीमारियों में और कैसे काम करता है, चलिये इसके बारे में विस्तृत रुप से जानते हैं।

वासा या अडुसा सिर दर्द से राहत दिलाता है 

आजकल के तनाव भरी जिंदगी में सिरदर्द आम बीमारी हो गई है, सिरदर्द होने पर अडूसा का सेवन बहुत लाभकारी होता है :-

  • अडूसा के छाया में सूखे हुए फूलों को पीस लें, 1 से 2 ग्राम फूल के चूर्ण में समान मात्रा में गुड़ मिलाकर खिलाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
  • वासा की 20 ग्राम जड़ को 200 मिली दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर, इसमें 30 ग्राम मिश्री तथा 15 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिरदर्द, आँख का रोग, दर्द, हिचकी, खांसी आदि बीमारियों से राहत मिलता है।
  • छाया में सूखे हुए वासा के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिरदर्द दूर होता है, स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।  

वासा आँखों का सूजन कम करता है 

अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण या दिन भर कंप्यूटर पर काम करने के वजह से आँखों में सूजन हुआ है, तो वासा का औषधीय गुण बहुत काम आता है, वासा के 2 से 4 ताजे फूलों को गर्म कर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की सूजन कम होती है।

वासा मुँह में घाव या सूजन में फायदेमंद है 

मुंह के छालों को ठीक करने में अडूसा काफी उपयोगी है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार अडूसा शीत और कषाय होता है, जिससे यह मुँह के छालों के लक्षणों को कम करने में मदद करता है, आइये जानते हैं कि मुंह के छालों या घाव के इलाज में अडूसा का इस्तेमाल कैसे करें :-
  • अगर किसी इंफेक्शन के कारण मुँह में घाव या सूजन हुआ है, तो वासा का प्रयोग जल्दी आराम पाने में मदद करेगा।
  • यदि केवल मुख में छाले हों तो वासा के 2 से 3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है।
  • इसकी लकड़ी की दातौन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।
  • वासा के 50 मिली काढ़े में एक चम्मच गेरू और दो चम्मच मधु मिलाकर मुख में रखने से मुँह का घाव सूख जाता है।

वासा मसूड़ों के दर्द से राहत दिलाता है 

मसूड़ों में दर्द या सूजन होना एक आम समस्या है, आप घरेलू उपायों की मदद से इस दर्द से छुटकारा पा सकते हैं, विशेषज्ञों के अनुसार अडूसा में कषाय रस होने के कारण यह दर्द और सूजन को कम करने में असरकारक है, इसलिए अगर आप मसूड़ों के दर्द से परेशान हैं, तो चिकित्सक की सलाह अनुसार अडूसा का उपयोग करें। 

वासा दांतों की कैविटी से राहत दिलाता है 

बच्चे और वयस्क सभी दांतों के कैविटी से परेशान रहते हैं, इसके लिए वासा का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा, दाढ़ या दांत में कैविटी हो जाने पर उस स्थान में वासा पत्ते का निचोड़ भर देने से आराम होता है।

वासा दांत दर्द में फायदेमंद है 

ऐसा कौन है जो दांत दर्द से परेशान नहीं रहता है, इसके लिए अडूसा का प्रयोग इस तरह से करने पर जल्दी राहत मिलती है, वासा के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत दर्द कम होता है।

वासा सांस संबंधी रोगों में फायदेमंद है 

अगर सांस संबंधी समस्या से परेशान रहते हैं, तो वासा का औषधीपरक गुण बहुत काम आता है।
अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रेगनी के 10 से 20 मिली काढ़े में 1 ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण सांस संबंधी रोग पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है।
वासा के पञ्चाङ्ग को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर रोज 10 ग्राम मात्रा में खाने से सांस लेते वक्त खांसी होने पर उसमें लाभ होता है।

वासा दमा रोग से आराम दिलाता है 

हर बार मौसम बदलने के समय अगर आप दमे से परेशान रहते हैं, तो अडूसा का सेवन करें, इसके ताजे पत्तों को सुखाकर, उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों को पीसकर चूर्ण करके धूम्रपान करने से सांस लेने में आश्यर्चजनक लाभ होता है।

वासा खांसी में फायदेमंद है 

अगर मौसम के बदलाव के कारण सूखी खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है, तो वासा से इसका इलाज किया जा सकता है :-
  • 5 मिली वासा पत्र स्वरस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग में लाभ होता है।
  • अडूसा, मुनक्का और मिश्री का क्वाथ बनाकर 10 से 20 मिली क्वाथ दिन में 3 से 4 बार पिलाने से सूखी खांसी का शमन होता है।
  • 5 मिली अडूसा के रस में शहद मिलाकर 7 दिन तक सेवन करने से धातुक्षय तथा श्वास का शमन हो जाता है।
  • 2 ग्राम अमृतासत्त्, 60 मिग्रा ताम्रभस्म तथा 2 ग्राम बेलगिरी के चूर्ण को मिलाकर 5 मिली अडूसा के रस के साथ प्रात सायं प्रयोग करने से क्षय, कास तथा श्वास का शमन होता है।
  • वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच तथा 1 चम्मच अदरक रस में, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी में आराम हो जाता है।

वासा क्षय रोग या तपेदिक में फायदेमंद है 

तपेदिक जैसे संक्रामक रोग में भी वासा का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद तरीके से काम करता है, अडूसा के पत्तों के 20 से 30 मिली काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर पिलाने से खांसी, सांस संबंधी समस्या और क्षय रोग में लाभ होता है।

वासा आध्मान या अपच में फायदेमंद है 

आजकल के जीवनशैली में असंतुलित खान-पान आम बात है और फिर इसका सीधा असर पेट पर पड़ता है, एसिडिटी, अपच जैसी समस्याओं से हर इंसान परेशान है, इस बीमारी से राहत पाने के लिए वासा का सेवन इस तरह से करें, वासा छाल का चूर्ण 1 भाग, अजवायन का चूर्ण चौथाई भाग और इसमे आठवां हिस्सा सेंधा नमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरल कर 1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के बाद 1 से 3 गोली को सुबह-शाम सेवन करने से वात के कारण बुखार तथा आध्मान विशेषत भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द - मन्द पीड़ा होना में लाभ होता है।

वासा अतिसार या दस्त में फायदेमंद है 

मसालेदार या रास्ते का तला हुआ खाना खाने से संक्रमण हो गया है, अगर ऐसे संक्रमण के कारण दस्त हो रहा है, रुकने का नाम नहीं ले रहा है, तो वासा का घरेलू उपाय जल्द आराम दिलाने में मदद करेगा, 10 से 20 मिली वासा पत्ते के रस को दिन में 3 से 4 बार पीने से दस्त में लाभ होता है।

वासा जलोदर से राहत दिलाने में फायदेमंद है 

पेट में जल या प्रोटीन द्रव्य के ज्यादा हो जाने के कारण पेट फूल जाता है और दर्द होने लगता है, ऐसी परेशानी में वासा बहुत फायदेमंद होता है, जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाये, उसमें वासा के पत्तों का 10 से 20 मिली स्वरस दिन में 2 से 3 बार पिलाने से लाभ होता है।

वासा बवासीर या अर्श में फायदेमंद है 

अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है, तो पाइल्स की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, उसमें वासा का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है, अडूसा के पत्ते और सफेद चंदन इनको बराबर मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए, इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में दो बार सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में बहुत लाभ होता है, अर्शांकुरों में यदि सूजन हो तो वासा के पत्तों के काढ़े का बफारा देना चाहिए।

वासा कामला या पीलिया में फायदेमंद है 

अगर आपको पीलिया हुआ है और आप इसके लक्षणों से परेशान हैं, तो वासा का सेवन इस तरह से कर सकते हैं, वासा पञ्चाङ्ग के 10 मिली रस में मधु और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर पिलाने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।

वासा किडनी के दर्द से आराम दिलाता है 

अडूसा का औषधीय गुण किडनी के दर्द से आराम दिलाने में बहुत फायदेमंद है, अडूसे और नीम के पत्तों को गर्म कर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 मिली रस में 5 मिली शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भयंकर दर्द में आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है।

वासा मूत्र संबंधी समस्याओं में फायदेमंद है 

मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि, वासा इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है :-
  • मूत्र दोष में खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
  • वासा के 8 से 10 फूलों को रात्रि के समय एक गिलास जल में भिगोकर सुबह मसलकर छानकर पीने से मूत्रदाह या मूत्र करते हुए जलन से आराम मिलता है।

वासा मासिक धर्म के कष्ट से आराम दिलाता है 

महिलाओं में मासिक धर्म की समस्या बहुत ही आम है, लेकिन वासा का औषधीय गुण इस बीमारी से निजात दिलाने में बहुत काम आता है, वासा के पत्ते ऋतुस्राव को नियंत्रित करते हैं, मासिक धर्म में रक्तस्राव यानि ब्लीडिंग अच्छी तरह से न होने पर वासा पत्ते में 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा लीटर पानी में पका लें, चतुर्थांश शेष रहने पर इस काढ़े का कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।

वासा डिलीवरी का कष्ट कम करता है 

वासा का औषधीय गुण डिलीवरी के प्रक्रिया को सुखपूर्वक करने में मदद करता है :-
  • अडूसा की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलों व योनि पर लेप करने से तथा जड़ को कमर पर बांधने से प्रसव सुख पूर्वक होता है।
  • पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग इनमें से किसी एक की जड़ को नाभि, वस्तिप्रदेश तथा भग प्रदेश पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।

वासा सफेद पानी या प्रदर में फायदेमंद है 

महिलाओं को अक्सर योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या होती है, सफेद पानी का स्राव अत्यधिक होने पर कमजोरी भी हो जाती है, इससे राहत पाने में वासा का सेवन फायदेमंद होता है :-
  • अडूसा के 10 से 15 मिली रस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खाँड तथा 1 चम्मच मधु मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
  • 10 मिली वासा पत्र स्वरस में 1 चम्मच मधु मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।

वासा रक्तप्रदर में फायदेमंद है  

इसमें गर्भाशय से खून बहता है, जो प्रत्याशित मासिक धर्म के बीच होता है, ऐसा कभी-कभी मेनोपॉज का समय पास आने पर भी होता है, इस बीमारी से राहत पाने के लिए वासा के 10 मिली पत्ते के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार देने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

वासा ऐंठन में लाभकारी है 

वात रोग में अक्सर हाथ पैरों में ऐंठन होता है, लेकिन वासा का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद होता है, वासा के पत्ते के रस में सिद्ध किए तिल के तेल की मालिश करने से वात वेदना तथा हाथ पैरों की ऐंठन मिट जाती है।

वासा गठिये के रोग में फायदेमंद है 

वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिकाई करने से जोड़ों के दर्द और लकवा में आराम पहुंचाता है।

वासा फोड़ा में फायदेमंद है 

फोड़ा अगर सूख नहीं रहा है, तो वासा का इस तरह से प्रयोग करने पर जल्दी सूख जाता है, फोड़े पर प्रारंभ में ही इसके पत्तों को पानी के साथ पीसकर लेप कर दें, तो फोड़ा बैठ जाता है और कोई कष्ट नहीं होता।

वासा चेचक के कष्ट राहत दिलाता है 

यदि चेचक फैली हुई हो तो वासा का 1 पत्ता तथा मुलेठी 3 ग्राम इन दोनों का काढ़ा बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है।

वासा दाद-खुजली में फायदेमंद है 

आजकल के तरह-तरह के नए-नए कॉज़्मेटिक प्रोडक्ट के दुनिया में त्वचा रोग होने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है, दाद-खुजली जैसे चर्मरोग में वासा का प्रयोग बहुत फायदेमंद होता है, अडूसा के 10 से 12 कोमल पत्ते तथा 2 से 5 ग्राम हल्दी को एक साथ गोमूत्र से पीस कर लेप करने से खुजली, सूजन रोग शीघ्र नष्ट होता है, इससे दाद में भी लाभ होता है।

वासा मिरगी में फायदेमंद है 

प्रतिदिन जो रोगी दूध भात खाते हैं, उसमें 2 से 5 ग्राम वासा चूर्ण को 1 चम्मच मधु के साथ सेवन करने से उसे पुराने भयंकर मिरगी रोग में अत्यन्त लाभ होता है।

वासा रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहने की समस्या) में फायदेमंद है 

नकसीर और रक्तपित में अडूसा का उपयोग फायदेमंद होता है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार इसमें रक्त संग्राहिका का गुण होता है, इस गुण की वजह से ही यह रक्तस्राव को नियंत्रित करने में मदद करता है, आइये जानते हैं कि रक्तपित्त की समस्या होने पर अडूसा या वासा का उपयोग कैसे करें :- 
  • ताजे हरे अडूसा के पत्तों का रस निकालकर 10 से 20 मिली रस में मधु तथा खाँड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है।
  • 10 से 20 मिली अडूसा पत्ते के रस में तालीस पत्र 2 गाम चूर्ण तथा मधु मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ की बीमारी, पित्त विकार, दम फूलना, गले की खराश तथा रक्तपित्त ठीक होता है।
  • वासामूल त्वक्, मुनक्का तथा हरड़ इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिली पानी में पकाएं, चतुर्थांश शेष रहने पर काढ़े में खाँड तथा मधु डाल कर पीने से खांसी, सांस लेने में तकलीफ तथा रक्तपित्त आदि रोगों में लाभ होता है।

वासा आत्रिक-ज्वर (टाइफाइड) में फायदेमंद है 

वासा या अडूसा का औषधीय गुण टाइफाइड के लक्षणों से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं, इसके लिए वासा का सही तरह से सेवन करना ज़रूरी होता है, 3 से 6 ग्राम वासामूल चूर्ण का सेवन करने से आत्रिक-ज्वर (टाइफाइड) में लाभ होता है।

वासा ज्वर या बुखार में फायदेमंद है 

पैत्तिक ज्वर से राहत पाने के लिए वासा का पत्ता और आंवला बराबर लेकर कूट कर शाम के समय मिट्टी के बर्तन में (कुल्हड़) भिगो दें, सुबह पीसकर उसका रस निचोड़ लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से बुखार कम होता है।

वासा कफ या बलगम से राहत दिलाता है 

अगर तापमान के उतार-चढ़ाव के साथ आपको बार-बार कफ या बलगम भरी खांसी होने लगती है, तो वासा का घरेलू इलाज राहत दिलाने में मदद करेगा, इसके लिए हरड़, बहेड़ा, आँवला, पटोल पत्ता, वासा, गिलोय, कुटकी तथा पिप्पली मूल को मिलाकर, यथा-विधि काढ़ा करके 10 से 20 मिली काढ़े में 2 ग्राम मधु डालकर सेवन करने से कफ संबंधित ज्वर में लाभ होता है, इसके अलावा अडूसा, पीपरामूल, कुटकी, नेत्रबाला तथा धमासा का काढ़ा बनाकर 10 से 20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा सोंठ चूर्ण डालकर पीने से कफज्वर में लाभ होता है।

वासा अनीमिया में फायदेमंद है 

शरीर में रक्त की कमी को दूर करने के लिए वासा का सेवन फायदेमंद होता है, सिर्फ एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि वासा का सेवन सही तरह से हो, त्रिफला, गिलोय, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल तथा वासा 20 ग्राम लेकर 320 मिली जल में पकाएं, जब चतुर्थांश शेष रह जाये तो इस काढ़ा में मधु मिलाकर 20 मिली सुबह-शाम सेवन कराने से पीलिया तथा पाण्डु (रक्ताल्पता) में लाभ होता है।

वासा सन्निपात ज्वर में फायदेमंद है 

सन्निपातज्वर में पुटपाक विधि से निकाले हुए 10 मिली अडूसा रस में थोड़ा अदरक का रस और तुलसी का पत्ता मिलाकर उसमें मुलेठी को घिसकर शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए, इसके अलावा वासा जड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम तथा काली मिर्च 1 ग्राम को मिलाकर काढ़ा बनाकर, 10 से 20 मिली काढ़े में मधु मिलाकर पिलाना चाहिए।

वासा शरीर की दुर्गन्ध से राहत दिलाता है 

चाहे वह गर्मी का मौसम हो या सर्दी का, किसी-किसी के शरीर के बहुत दुर्गंध आती है, लेकिन वासा का घरेलू इलाज इस संदर्भ में बहुत फायदेमंद साबित होता है, वासा के पत्ते के रस में थोड़ा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।

अन्य प्रयोग 

जंतुघ्न में वासा का प्रयोग - अडूसा जलीय कीड़ों तथा जन्तुओं के लिए विषैला है, मेंढक इत्यादि छोटे जन्तु इससे मर जाते हैं, इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।
पशु व्याधि में वासा का प्रयोग - गाय तथा बैलों को यदि कोई उदर व्याधि हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है, बैलों के उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं।
पुस्तकों को कीड़े से बचाने में वासा का प्रयोग - वासा के सूखे पत्तों को पुस्तकों में रखने से उनमें कीड़े नहीं लगते।

वासा का उपयोगी भाग 

  • फूल
  • जड़ 
  • पत्ता | 

वासा का इस्तेमाल कैसे किया जाता है ? 

आमतौर पर वासा का सेवन बीमारी में लिखी हुई मात्रा के अनुसार ही करना चाहिए, अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए वासा का उपयोग कर रहें हैं, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें, चिकित्सक के सलाह के अनुसार 3 से 6 ग्राम जड़ का चूर्ण, 10 से 15 मिली पत्ते के रस का सेवन करना चाहिए।

वासा कहां पाया या उगाया जाता है ? 

अडूसे के स्वयंजात पौधे सम्पूर्ण भारतवर्ष में लगभग 400 से 1400 फूट की ऊंचाई तक कंकरीली भूमि में झाड़ियों के समूह में उगते हैं।

मेहंदी के फायदे | mehndi ke fayde

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