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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
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पाषाणभेद के फायदे
पाषाणभेद एक पौधा है जिसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है, पाषाणभेद का शाब्दिक अर्थ है कि पत्थरों को तोड़ देना और यही इस औषधि का प्रमुख गुण है, पाषाणभेद का मुख्य उपयोग पथरी के इलाज में किया जाता है, इस जड़ी-बूटी में ऐसे औषधीय गुण हैं जो पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में मदद करते हैं, इस लेख में हम आपको पाषाणभेद के फायदे, औषधीय गुण और उपयोग के बारे में बता रहे हैं।
bergenia plant images |
पाषाणभेद क्या है ?
इस पौधे के विषय में बहुत मतभेद हैं, कई विद्वानों ने भिन्न-भिन्न पौधों को पाषाणभेद माना है, इस पौधे का तना छोटा और पत्तियां अंडाकार होती हैं, पाषाणभेद की पत्तियों की लम्बाई पुष्पकाल में 5 से 15 सेमी और सर्दियों में लगभग 30 सेमी तक लम्बी होती है।
इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद और गुलाबी रंग के होते हैं, पाषाणभेद के बीजों का आकार पिरामिड जैसा होता है, इसकी जड़ों और पत्तियों को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, बाजार में इसके भूरे रंग के कड़े, खुरदुरे एवं झुर्रीदार छालयुक्त सूखे टुकड़े मिलते हैं, इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से नवम्बर तक होता है।
अन्य भाषाओं में पाषाणभेद के नाम
पाषाणभेद का वानस्पतिक नाम बर्जेनिआ सिलिएटा है, यह सेक्सिप्रैंगेसी कुल का पौधा है, आइये जानते हैं अन्य भाषाओं में इस पौधे को किन नामों से जाना जाता है।
- Sanskrit : पाषाणभेद, अश्मभेद, गिरिभेद, अश्मघ्न, पाषाणभेदक
- Hindi : पाषानभेद, पत्थरचूर, उर्दू-पाषान भेद
- Odia : कानाभिण्डि, पेठे
- Uttarakhand : सिलफदा
- Assamese : तुप्रीलता
- Kashmiri : पाषाणभेद
- Kannad : एलेलगया, पाषाणभेदी
- Gujrati : पाषाणभेद
- Tamil : वट्टीत्रीउप्पी
- Telugu : तेलनुरूपिण्डि
- Bengali : हिमसागर, पाठाकुचा, पत्थरचुरी
- Marathi : पाषाणभेद
- Nepali : सोहेप सोआ, सिलपरो
- Punjabi : बनपत्रक, फोटा
- Meghalaya : जेजीव गॉव रेमसॉन्ग
- Mijoram : खम-डेमडवी
- English : सेक्सीप्रैंज, स्टोन ब्रेकिंग, इण्डियन रॉक फॉइल याम
- Arabi : जेन्टीएन
- Persian : कुशाद |
पाषाणभेद के औषधीय गुण
- पाषाणभेद मधुर, कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, तीक्ष्ण तथा त्रिदोषहर होता है।
- यह सारक, अश्मरी-भेदक, वस्तिशोधक तथा मूत्रविरेचक होता है।
- यह अर्श, गुल्म, मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, हृद्रोग, योनिरोग, प्रमेह, प्लीहारोग, शूल, व्रण, दाह, शिश्नशूल तथा अतिसार-नाशक होता है।
- इसका पौधा पूयरोधी, तिक्त तथा कषाय होता है।
- यह स्नायुरोग, अधरांगवात, गृध्रसी, व्रण, ग्रन्थिशोथ, विषाक्तता, कण्डु तथा कुष्ठ में लाभप्रद होता है।
पाषाणभेद के फायदे और उपयोग
पाषाणभेद को मुख्य रूप से पथरी के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह कई अन्य बीमारियों के इलाज में भी सहायक है, आइये पाषाणभेद के फायदों और उपयोग के तारीकों के बारे में विस्तार से जानते हैं :-
पाषाणभेद आंखों के रोगों को दूर करता है
आंखों से जुड़े रोगों के इलाज में भी पाषाणभेद बहुत उपयोगी है, इसके लिए पाषाणभेद के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहर चारों तरफ लगाएं, इसे लगाने से आंखों में जलन और पानी बहने की समस्या में लाभ मिलता है।
पाषाणभेद कान के दर्द से आराम दिलाता है
अगर आप कान दर्द से परेशान हैं, तो पाषाणभेद के उपयोग से आप दर्द से राहत पा सकते हैं, इसके लिए पाषाणभेद की पत्तियों के रस की एक-दो बूंदें कान में डालें, तो इससे दर्द से जल्दी आराम मिलता है।
पाषाणभेद पथरी की समस्या दूर करता है
- पाषाणभेद चूर्ण में सोलह गुना गोमूत्र तथा चार गुना घी मिलाकर विधिवत् सिद्ध करके सेवन करने से पथरी के इलाज में मदद मिलती है।
- पाषाणभेद की पत्तियों के रस की 5 एमएल मात्रा को बताशे में डालकर खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।
- 20 से 30 मिली पाषाणभेद काढ़े में शिलाजीत, खाँड़ या मिश्री मिलाकर पीने से पित्तज पथरी के इलाज में फायदा मिलता है।
- 2 से 4 ग्राम पाषाणभेद चूर्ण को शिलाजीत तथा मिश्री मिले हुए दूध के साथ पीने से पित्त की पथरी के इलाज में मदद मिलती है।
- समभाग पाषाणभेद, वरुण की छाल, गोखरू, एरण्ड मूल, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी तथा तालमखाना मिलाकर काढ़ा बना लें, इस काढ़े को पीने से पथरी के इलाज में लाभ मिलता है।
- पाषाणभेद, वरुण छाल, गोखरू तथा ब्राह्मी के 20 से 30 मिली काढ़े में शिलाजीत तथा ककड़ी के बीज व गुड़ मिलाकर पीने से पथरी टूटकर निकल जाती है।
पाषाणभेद खांसी दूर करने के लिए फायदेमंद है
अगर आप खांसी से परेशान हैं तो पाषाणभेद का उपयोग करें, खांसी के लिए पाषाणभेद के जड़ के चूर्ण को 1 से 2 ग्राम मात्रा में लें और इसे शहद के साथ खाएं, इसके सेवन से खांसी के साथ-साथ फेफड़ों से जुड़े रोगों से आराम मिलता है।
पाषाणभेद मुंह के छालों को ठीक करता है
मुंह में छाले होना एक आम समस्या है, इसके लिए तुरंत एलोपैथी दवा नहीं खाना चाहिए, बल्कि घरेलू उपायों से इसे ठीक करने की कोशिश करें, मुंह में छाले होने पर पाषाणभेद की ताज़ी जड़ों और पत्तियों को चबाएं, इससे मुंह के छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं।
पाषाणभेद पेट के रोगों से राहत दिलाता है
अक्सर लोग पेट से जुड़ी छोटी मोटी बीमारियों जैसे कि दस्त, कब्ज आदि से परेशान रहते हैं, आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की मानें तो घरेलू उपायों की मदद से आप इन समस्याओं से जल्दी आराम पा सकते हैं, आइये जानते हैं पेट से जुड़ी बीमारियों में पाषाणभेद कितना उपयोगी है।
कब्ज और पेचिश : 1 से 2 ग्राम पाषाणभेद की जड़ के पेस्ट को पानी में उबाल लें और पानी सूख जाए तो इस मिश्रण का उपयोग करें, यह कब्ज दूर करने में मदद करता है, इसी तरह जड़ के पीसते को ताजे जल के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ मिलता है।
दस्त : 1 से 2 ग्राम पाषाणभेद की पत्तियों के चूर्ण को छाछ के साथ मिलाकर पीने से दस्त में आराम मिलता है।
पाषाणभेद मूत्र संबंधी रोगों के इलाज में सहायक है
मूत्र संबंधित कई बीमारियां होती हैं जैसे पेशाब कम होना, पेशाब करते समय दर्द या मूत्र मार्ग में संक्रमण आदि, विशेषज्ञों के अनुसार इन समस्याओं में पाषाणभेद का उपयोग करना लाभदायक होता है, इसके लिए नल, पाषाणभेद, दर्भ, गन्ना, खीरा और ककड़ी के बीज को बराबर मात्रा में लेकर कूट लें या पीस लें, इसमें 8 गुना दूध डालकर क्षीरपाक करें, इसमें चौथाई मात्रा में घी मिलाकर पीने से कम पेशाब होने की समस्या में आराम मिलता है।
पाषाणभेद, अमलतास, धमासा, हरीतकी, निशोथ, पुष्करमूल, सिंघाड़ा, ककड़ी के बीजों और गोखरू से निर्मित 10 से 20 मिली काढ़ा बनाएं, इस काढ़े में शहद मिलाकर पीने से पेशाब के दौरान दर्द व कम पेशाब होने जैसी समस्याओं में लाभ मिलता है।
पाषाणभेद योनिस्राव और ल्यूकोरिया के इलाज में फायदेमंद है
ल्यूकोरिया एक गंभीर समस्या है, जिसमें योनि से सफ़ेद रंग का तरल निकलता रहता है, इसे सफेद पानी की समस्या भी कहते हैं, आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पाषाणभेद का काढ़ा बनाकर 20 मिली काढ़े में शहद मिलाकर पिएं, इससे योनिस्राव और मूत्र संबंधी समस्याओं में आराम मिलता है, इसी तरह 20 से 25 मिली पाषाणभेद के काढ़े में फिटकरी भस्म तथा मिश्री मिलाकर पीने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
पाषाणभेद घाव को ठीक करने में मदद करता है
पाषाणभेद के तने के रस को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है, इसके अलावा पाषाणभेद की जड़ का पेस्ट लगाने से भी घाव जल्दी ठीक होते हैं और जलन कम होती है।
पाषाणभेद के उपयोगी भाग
विशेषज्ञों के अनुसार पाषाणभेद के पेड़ के निम्न भाग सेहत के लिए उपयोगी हैं।
- पत्तियां
- प्रंद
- काण्ड |
पाषाणभेद का उपयोग कैसे करें ?
विशेषज्ञों के अनुसार पाषाणभेद चूर्ण की 3 से 6 ग्राम मात्रा और इसके काढ़े का 50 से 100 मिली की मात्रा में उपयोग करना चाहिए, अगर आप किसी गंभीर बीमारी के घरेलू इलाज के रूप में इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लें।
पाषाणभेद कहां पाया या उगाया जाता है ?
भारत में पाषाणभेद का पौधा कश्मीर, हिमाचल प्रदेश से उत्तराखण्ड तक फैले हिमालयी क्षेत्र में लगभग 2200 से 3200 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है, इसके अलावा यह एशिया, भूटान, तिब्बत के अतिरिक्त अफगानिस्तान में भी पाया जाता है।
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