गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

अंजीर के फायदे

अंजीर के फायदे 

अंजीर का अंग्रेजी नाम फ़िग, वानस्पतिक नाम फ़िकस कैरिका, प्रजाति फ़िकस, जाति कैरिका, कुल मोरेसी अंजीर एक वृक्ष का फल है जो पक जाने पर गिर जाता है, पके फल को लोग खाते हैं सुखाया फल बिकता है, सूखे फल को टुकड़े-टुकड़े करके या पीसकर दूध और चीनी के साथ खाते हैं, इसका स्वाद जैम जैसा होता है फल के टुकड़ों का मुरब्बा भी बनाया जाता है, सूखे फल में चीनी की मात्रा लगभग ६२ प्रतिशत तथा ताजे पके फल में २२ प्रतिशत होती है, इसमें कैल्सियम तथा विटामिन 'ए' और 'बी' काफी मात्रा में पाए जाते हैं, इसके खाने से बध्दकोष्ठता (कब्जियत) दूर होती है।

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अंजीर मध्यसागरीय क्षेत्र और दक्षिण पश्चिम एशियाई मूल की एक पर्णपाती झाड़ी या एक छोटे पेड़ है, जो पाकिस्तान से यूनान तक पाया जाता है, इसकी लंबाई ३ से १० फुट तक हो सकती है, अंजीर विश्व के सबसे पुराने फलों मे से एक है, यह फल रसीला और गूदेदार होता है इसका रंग हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है, अंजीर अपने सौंदर्य एवं स्वाद के लिए प्रसिद्ध अंजीर एक स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक और बहुउपयोगी फल है, यह विश्व के ऐसे पुराने फलों में से एक है, जिसकी जानकारी प्राचीन समय में भी मिस्त्र के फैरोह लोगों को थी, आजकल इसकी पैदावार ईरान, मध्य एशिया और अब भूमध्यसागरीय देशों में भी होने लगी है, प्राचीन यूनान में यह फल व्यापारिक दृष्टि से इतना महत्त्वपूर्ण था और इसके निर्यात पर पाबंदी थी, आज विश्व का सबसे पुराना अंजीर का पेड़ सिसली के एक बगीचे में है।

अंजीर का वृक्ष छोटा तथा पर्णपाती (पतझड़ी) प्रकृति का होता है, तुर्किस्तान तथा उत्तरी भारत के बीच का भूखंड इसका उत्पत्ति स्थान माना जाता है, भूमध्यसागरीय तट वाले देश तथा वहाँ की जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता है, निस्संदेह यह आदिकाल के वृक्षों में से एक है और प्राचीन समय के लोग भी इसे खूब पसंद करते थे, ग्रीसवासियों ने इसे कैरिया (एशिया माइनर का एक प्रदेश) से प्राप्त किया है, इसलिए इसकी जाति का नाम कैरिका पड़ा रोमवासी इस वृक्ष को भविष्य की समृद्धि का चिह्न मानकर इसका आदर करते थे, स्पेन, अल्जीरिया, इटली, तुर्की, पुर्तगाल तथा ग्रीस में इसकी खेती व्यावसायिक स्तर पर की जाती है।

नाशपाती के आकार के इस छोटे से फल की अपनी कोई विशेष तेज़ सुगंध नहीं पर यह रसीला और गूदेदार होता है, रंग में यह हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है, छिलके के रंग का स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता पर इसका स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहाँ उगाया गया है और यह कितना पका है, इसे पूरा का पूरा छिलका बीज और गूदे सहित खाया जा सकता है, घरेलू उपचार में ऐसा माना जाता है कि स्थाई रूप से रहने वाली कब्ज़ अंजीर खाने से दूर हो जाती है, जुकाम, फेफड़े के रोगों में पाँच अंजीर पानी में उबाल कर छानकर यह पानी सुबह-शाम पीना चाहिए, दमा जिसमे कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है इससे कफ बाहर आ जाता है, कच्चे अंजीरों को कमरे के तापमान पर रख कर पकाया जा सकता है, लेकिन उसमें स्वाभाविक स्वाद नहीं आता घरेलू उपचारों में अंजीर का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है।

पौष्टिक तत्व

अंजीर कैलशियम, रेशों व विटामिन ए, बी, सी से युक्त होता है, एक अंजीर में लगभग ३० कैलरी होती हैं, एक सूखे अंजीर में कैलरी ४९, प्रोटीन ०.५७९ ग्राम, कार्ब १२.४२ ग्राम, फाइबर २.३२ ग्राम, कुल फैट ०.२२२ ग्राम, सैचुरेटेड फैट ०.०४४५ ग्राम, पॉलीअनसैचुरेटेड फैट ०.१०६, मोनोसैचुरेटेड फैट ०.०४९ ग्राम, सोडियम २ मिग्रा और विटामिन ए, बी, सी युक्त होता है, इसमें ८३ प्रतिशत चीनी होने के कारण यह विश्व का सबसे मीठा फल है, डायबिटीज के रोगियों को दूसरे फलों की तुलना में अंजीर का सेवन खासतौर से लाभकारी होता है, अंजीर पोटैशियम का अच्छा स्रोत है, जो रक्तचाप और रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है, अंजीर में स्थित रेशे वजन को संतुलित रखते हुए मोटापे को कम रखते हैं साथ ही स्तन कैंसर और मेनोपॉज की तकलीफ़ों को दूर करने में मददगार पाए गए हैं, सूखे अंजीर में फेनोल, ओमेगा-३, ओमेगा-६ होता है, यह फैटी एसिड कोरोनरी हार्ट डिजीज के खतरे को कम करने में मदद करता है, अंजीर में कैल्शियम बहुत होता है, जो हड्डियों को मजबूत करने में सहायक होता है, अंजीर में पोटैशियम ज्यादा होता है और सोडियम कम होता है, इसलिए यह उच्चरक्तचाप की समस्या से भी बचाता है, अंजीर के सेवन करने से मधुमेह, सर्दी-जुकाम, दमा और अपच जैसी तमाम व्याधियों में भी लाभ देखा गया है।

अंजीर के प्रकार

अंजीर कई प्रकार का होता है, परंतु मुख्य प्रकार चार हैं-

  • कैप्री फिग, जो सबसे प्राचीन है और जिससे अन्य अंजीरों की उत्पत्ति हुई है,
  • स्माइर्ना
  • सफेद सैनपेद्रू
  • साधारण अंजीर।

भारत में मार्सेलीज़, ब्लैक इस्चिया, पूना, बँगलोर तथा ब्राउन टर्की नाम की किस्में प्रसिद्ध हैं।

अंजीर की खेती

अंजीर की खेती भिन्न-भिन्न जलवायु वाले स्थानों में की जाती है, परंतु भूमध्यसागरीय जलवायु इसके लिए अत्यंत उपयुक्त है, फल के विकास तथा परिपक्वता के समय वायुमंडल का शुष्क रहना अत्यंत आवश्यक है, पर्णपाती वृक्ष होने के कारण पाले का प्रभाव इस पर कम पड़ता है, वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में इसका वृक्ष उपजाया जा सकता है, परंतु दोमट अथवा मटियार दोमट, जिसमें उत्तम जल निकास (ड्रेनेज) हो, इसके लिए सबसे श्रेष्ठ मिट्टी है, इसमें प्राय खाद नहीं दी जाती तो भी अच्छी फसल के लिए प्रतिवर्ष प्रति वृक्ष २० से ३० सेर सड़े हुए गोबर की खाद या कंपोस्ट जनवरी-फरवरी में देना लाभदायक है, इसे अधिक सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं पड़ती, ग्रीष्म ऋतु में फल की पूर्ण वृद्धि के लिए एक या दो सिंचाई कर देना अत्यंत लाभप्रद है।

अंजीर के नए पौधे मुख्यत कृत्तों (कटिंग) द्वारा प्राप्त होते हैं, एक वर्ष की अवस्था की डाल का इस कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है, कृत्त जनवरी में लगाए जाते हैं और एक वर्ष बाद इस प्रकार तैयार हुए पौधों को स्थायी स्थान पर पंद्रह-पंद्रह फुट की दूरी पर रोपते हैं, प्रति वर्ष सुषुप्ति काल में इसकी कटाई-छँटाई करनी चाहिए क्योंकि अच्छे फल पर्याप्त मात्रा में नई डालियों पर ही आते हैं, फल अप्रैल से जून तक प्राप्त होते हैं, लगाने के तीन वर्ष बाद वृक्ष फल देने लगता है और एक स्वस्थ, प्रौढ़ वृक्ष से लगभग ४०० फल मिलते हैं, पत्तियों के निचले भाग में एक प्रकार का रोग लगता है जिसे मंडूर (रस्ट) कहते हैं, परंतु यह रोग विशेष हानिकारक नहीं है।

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