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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
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वैनिला के फायदे
वैनिला एक सुगंधित पदार्थ है जो वैनिला वंश के ऑर्किड से व्युत्पन्न होता है जिसका मूल स्थान मेक्सिको है व्युत्पत्ति विज्ञान के अनुसार वैनिला शब्द की उत्पत्ति स्पैनिश शब्द लिट्ल पॉड से हुई है मूल रूप से प्री-कोलंबियाई मेसो-अमेरिकी लोगों द्वारा उपजाए जाने वाले वैनिला को १५२० ई. में चॉकलेट के साथ यूरोप में लाने का श्रेय स्पैनिश विजेता हर्नैन कोर्टेस को जाता है वैनिला के पौधे को मेक्सिको और मध्य अमेरिका से बाहर उपजाने का प्रयास वैनिला ऑर्किड उत्पन्न करने वाली टिक्सोचिट लता और मेलिपोना मक्खी की स्थानीय प्रजाति के बीच के सहजीवी संबंध के कारण निरर्थक सिद्ध हुआ हालांकि सन् १८३७ में बेल्जियन वनस्पति वैज्ञानिक चार्ल्स फ्रैंकोइस एंटोनी मॉरेन द्वारा इस तथ्य की खोज करने के बाद तथा पौधे के कृत्रिम परागण की एक विधि को विकसित करने के बाद यह सफल हो गया पर यह विधि वित्तीय रूप से कारगर नहीं रही और इसे व्यावसायिक रूप से नहीं अपनाया गया सन् १८४१ में इले बौर्बोन में रहने वाले फ़्रांसीसी स्वामित्व वाले एक १२ वर्षीय गुलाम एडमंड एल्बियस ने यह पता लगाया कि इस पौधे का हाथ से परागण किया जा सकता है जिसके बाद इस पौधे की वैश्विक कृषि का रास्ता खुल लगा।
वैनिला के फायदे |
वैनिला बीज की फलियों को उपजाने में लगने वाले गहन श्रम के कारण केसर के बाद वैनिला दूसरा सबसे कीमती मसाला है व्यय के बावजूद अपने सुगंध के कारण इसकी अधिक महत्ता है जिसके बारे में लेखक फ्रेडरिक रोजेन्गार्डन जूनियर ने अपनी पुस्तक द बुक ऑफ स्पाइसेज में इसे शुद्ध मसालेदार तथा उत्कृष्ट बताया है तथा इसके जटिल पुष्पीय सुगंध को विशिष्ट गुलदस्ता के रूप में वर्णित किया है इसकी ऊंची कीमत के बावजूद वैनिला का प्रयोग व्यावसायिक तथा घरेलू दोनों तरह के बेकिंग इत्र निर्माण एवं गंध-चिकित्सा में होता है।
वैनिला का इतिहास :-
पहले-पहल वैनिला की खेती करने वाले टोटोनैक लोग थे जो वर्तमान के वेराक्रूज प्रांत के मेक्सिको गल्फ कोस्ट पर स्थित मज़ातलान घाटी में रहते थे टोटोनैक की पौराणिक कथा के अनुसार राजकुमारी जैनेट को जब उसके पिता ने एक नश्वर के साथ शादी करने से रोका तो वह अपने प्रेमी के साथ जंगल में भाग गई जिसके फलस्वरूप उष्णकटिबंधीय ऑर्किड का जन्म हुआ प्रेमी युगल को पकड़ कर उनके सिर कलम कर दिए गए धरती पर जहां कहीं भी उनका रक्त गिरा उष्णकटिबंधीय आर्किड की लता उग आई |
पंद्रहवी शताब्दी में मेक्सिको की मध्य उच्चभूमि पर हमला करने वाले एज्टेक लोगों ने टोटोनैक लोगों पर विजय हासिल की और जल्द ही वैनिला की फली के स्वाद को परख लिया उन्होंने फली का नाम टिक्सोचिट या ब्लैक फ्लॉवर रखा क्योंकि फली को तोड़ने के बाद जल्द ही यह मुरझा जाती है और इसका रंग काला हो जाता है एज्टेक लोगों के अधीन हो जाने के बाद टोटोनैक लोगों ने एज्टेक की राजधानी टेनोक्टाइट्लैन वैनिला की फलियां भेजकर नजराना पेश किया।
१९वीं शदाब्दी तक मेक्सिको वैनिला का मुख्य उत्पादक रहा हालांकि सन् १८१९ में फ़्रांसीसी उद्यमी यह सोचकर वैनिला की फलियों को रियूनियन द्वीप और मॉरिशस ले गए कि वहां उसकी खेती की जाएगी रियूनियन द्वीप के एक १२ वर्षीय गुलाम एडमंड एल्बियस ने यह पता लगाया कि कैसे इसके फूलों का हाथों से शीघ्र परागण करवाया जा सकता है और कैसे इसकी फलियां मुरझाने लगतीं हैं इसके बाद जल्द ही उष्णकटिबंधीय ऑर्किड को रियूनियन द्वीप से कोमोरोस द्वीप तथा मेडागास्कर भेजा गया और साथ में उनके परागण के निर्देश भी भेजे गए सन् १८९८ तक मेडागास्कर रियूनियन और कोमोरोस द्वीपों ने २०० मिट्रिक टन वैनिला फलियों का उत्पादन किया जो दुनिया के उत्पादन का ८०% हिस्सा था।
१९७० के दशक के अंत में जब उष्णकटिबंधीय चक्रवात ने खेती की मुख्य जमीन को तबाह कर डाला तो वैनिला का बाजार भाव नाटकीय तरीके से बढ़ा
१९८० के दशक की शुरुआत में इंडोनेशियाई वैनिला के बाजार में आने के बावजूद कीमतों में कमी नहीं आई १९३० से वैनिला के वितरण और मूल्य तय कर रहे गुट को १९८० के दशक के मध्य में भंग कर दिया गया अगले कुछ सालों में वनीला की कीमत ७० फीसदी तक कम होकर २० अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई लेकिन अप्रैल २००० में मेडागास्कर में आए उष्णकटिबंधीय चक्रवात हूडा की वजह से कीमतें एक बार फिर से तेजी से बढ़ गईं लगातार तीसरे साल तक चक्रवात राजनीतिक अस्थिरता और खराब मौसम की वजह से २००४ में वैनिला की कीमतें आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर
५०० अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं इस वजह से नए देश भी वैनिला इंडस्ट्री में कदम जमाने लगे अच्छी फसल होने और नकली वैनिला के बाजार में आने से मांग में कमी हुई और दाम २००५ के मध्य में ४० डॉलर प्रति किलो तक लुढ़क गए।
दुनियाभर का आधा वैनिला उत्पादन मेडागास्कर में होता है मेक्सिको एक जमाने में प्राकृतिक वैनिला के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक हुआ करता था और वो सालाना ५०० टन उत्पादन करता था लेकिन २००६ में ये घटकर १० टन ही रह गया एक अनुमान के मुताबिक वैनिला उत्पादों के नाम से बेचे जाने वाले ९५ फीसदी सामान असल में कृत्रिम वैनिलिन से बने होते हैं जो लिग्निन से बनता है।
वैनिला की शब्द व्युत्पत्ति :-
पंद्रहवीं शताब्दी के दौर में कोलंबस के पहले वैनिला के बारे में किसी को पता नहीं था सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में जब स्पेन के खोजी यात्री मेक्सिको की खाड़ी के किनारे पहुंचे तब उन्होंने वैनिला को उसका मौजूदा नाम दिया स्पैनिश तथा पुर्तगाली नाविक तथा खोजकर्ता वैनिला को अफ्रीका और बाद में उसी शताब्दी में एशिया लेकर आए उन्होंने इसे वइनिला या छोटी फली कहा अंग्रेजी भाषा में वैनिला शब्द को सन् १७५४ में शामिल किया गया जब वनस्पति वैज्ञानिक फिलिप मिलर ने अपनी पुस्तक गार्डेनर्स डिक्शनरी में इसके वंश के बारे में लिखा लैटिन शब्द वेजाइना से वैना और फिर उसका परिवर्तित रूप वैनिला की उत्पत्ति हुई जो फली जिस प्रकार से खुलती है और उससे बीज बाहर आते हैं उसे बताता है।
वैनिला ऑर्किड :-
वैनिलिन के लिए उपजाई जाने वाली प्रमुख किस्म है- वानील्ला प्लानीफ़ोल्या यद्यपि यह मूल रूप से मेक्सिको की किस्म है पर अब यह उष्णकटिबंधीय प्रदेश में व्यापक रूप से उपजाया जाता है मेडागास्कर दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है अन्य स्रोतों में शामिल हैं- वानील्ला पोम्पोना तथा वानील्ला ताहीतेन्सीस् पर इन किस्मों में उपस्थित वैनिलिन की मात्रा वानील्ला प्लानीफ़ोल्या से काफी कम होती है।
वैनिला एक मौजूदा पेड़ खम्भे या किसी और सहारे पर चढ़ते हुए एक लता के रूप में उगता है इसे वन में पेड़ों पर बगीचे में पेड़ या खम्भों पर या किसी शेडर पर उगाया जा सकता है उत्पादकता के बढते हुए क्रम में इसकी उपज के वातावरण को टेरौइर कहते हैं और इसमें सिर्फ आसपास के पौधे ही नहीं बल्कि मौसम भूगोल तथा स्थानीय भूविज्ञान भी शामिल है इसे अकेला छोड़ दो तो सहारे पर यह जितना हो सकता है उतना बढ़ेगी और कुछ फूल खिलाएगी हर साल उत्पादक पौधे के ऊपरी हिस्से को नीचे की ओर मोड देते हैं जिससे पौधा उतनी ही ऊंचाई पर रहे जहाँ तक कोई इंसान खड़ा होकर पहुँच सके इससे फूल बनने की प्रक्रिया को भी काफी बढ़ावा मिलता है।
विशिष्ट सुगंध वाले यौगिक फल में पाए जाते हैं जो फूल के परागण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है एक फूल एक फल को जन्म देता है वानील्ला प्लानीफ़ोल्या के फूल उभयलिंगी होते हैं उनमें नर परागकोश तथा मादा वर्तिकाग्र अंग दोनों उपस्थित होते हैं हालांकि स्व-परागण से बचने के लिए ये अंग एक झिल्ली द्वारा अलग रहते हैं फूलों का प्राकृतिक परागण केवल एक विशेष मेलिपोने मक्खी द्वारा ही हो सकता है जो मेक्सिको एबेजा डे मॉन्टे या पहाड़ी मक्खी में पाई जाती है इसी मक्खी के कारण वैनिला उत्पादन में उस समय से मेक्सिको का ३०० वर्षों का लंबा एकाधिकार रहा जब से इसकी पहली बार यूरोपियनों द्वारा खोज की गई तथा फ़्रासीसियों ने अपने विदेशी उपनिवेशों पर इसकी लताएं उगाईं और तब तक रही जब तक कि इन मक्खियों का विकल्प नहीं ढूंढ लिया गया मेक्सिको के बाहर इसकी लताएं तो उगती थीं पर उनमें फल नहीं लगते उत्पादक इस मक्खी को उपज वाले स्थानों पर ले गए पर कोई फायदा नहीं हुआ बगैर मक्खी के फल उत्पादन का एकमात्र तरीका है कृत्रिम परागण और आज मेक्सिको में भी हाथ से किए जाने वाले परागण का गहन प्रयोग हो रहा है।
सन् १८३६ में वनस्पति वैज्ञानिक चार्ल्स फ्रैंकोइस एंटोनी मॉरेन पैपेंट्ला के आंगन में कॉफी पी रहे थे जिस दौरान उनका ध्यान काली मक्खियों पर गया जो उनकी मेज के आगे उगे वैनिला के फूलों के इर्द-गिर्द मंडरा रही थीं उन्होंने मक्खियों की गतिविधियों को समीप से देखा क्योंकि वे फूल के भीतर एक फड़फड़ाहट के साथ उतर कर कार्य कर रही थीं और इस प्रकिया में मकरंद का स्थांतरण हो रहा था कुछ घंटों के भीतर ही फूल बंद हो गए और कई दिनों के बाद मॉरेन ने पाया कि वैनिला की फलियां बननी शुरु हो गईं शीघ्र ही मॉरेन ने हाथ द्वारा परागण पर प्रयोग शुरु कर दिया कुछ वर्षों के बाद सन् १८४१ में एक १२ साल के लड़के ने एडमंड एल्बियस जो एक गुलाम था रियूनियन में हाथ द्वारा परागण की एक सरल और प्रभावी विधि ढूंढ निकाली जिसका आज भी प्रयोग होता है एक खेतिहर मजदूर ने बांस की एक धारदार छिपटी द्वारा परागकोश तथा वर्तिकाग्र को अलग करने वाली झिल्ली को हटाया और इसके बाद अंगूठे के प्रयोग द्वारा मकरंद को परागकोश से वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित कर दिया स्व-परागण वाले फूल में तब एक फल लगा वैनिला का फूल एक दिन तक जीवित रहता है कभी-कभी तो इससे भी कम और इसलिए उत्पादकों को अपने बगीचे में प्रतिदिन खुले फूलों को देखना पड़ता है जो काफी श्रमयुक्त कार्य है।
फल जो बीज का कैप्सूल होता है पौधे से ही लगा रहने छोड़ दिया जाता है जो पक कर अंततः खुल जाता है जैसे ही यह सूखता है फेनॉलिक यौगिक रवाकृत हो जाते हैं जिससे फली का आकार हीरे के चूर्ण सा हो जाता जिसे फ़्रांसीसियों ने गिव्रे का नाम दिया इससे तब वैनिला की विशिष्ट सुगंध उत्पन्न होने लगती है फल में नन्हे स्वादहीन बीज होते हैं ऐसे व्यंजनों जिसमें संपूर्ण प्राकृतिक वैनिला डाला जाता है उनमें ये बीज काले धब्बे जैसे दिखते हैं।
अन्य ऑर्किड बीजों की तरह वैनिला बीज कुछ निश्चित मायकोरिजल कवक की उपस्थिति के बगैर अंकुरित नहीं होता इसके बदले उत्पादक पौधे को कटिंग द्वारा उगाते हैं वे छह या अधिक पत्र गांठ वाले लता के खंडों को हटाते हैं जिसमें प्रत्येक पत्ती के सम्मुख एक जड़ होती है नीचे की दो पत्तियां हटा दी जाती हैं और इस क्षेत्र को मिट्टी में एक सहारे के साथ रोप दिया जाता है शेष ऊपरी जड़ सहारे के साथ लिपट जाती है और तब यह प्रायः मिट्टी में वृद्धि करती है अच्छी अवस्था में तेज वृद्धि होती है।
उपजाए जाने वाले :-
अमेरिका से आरंभ किया जाने वाले वा. प्लानीफ़ोल्या पौधे द्वारा उत्पादित बॉर्बन वैनिला या बॉर्बन मेडागास्कर वैनिला के नाम का प्रयोग हिंद महासागर के द्वीपों जैसे मेडागास्कर कोमोरोस तथा रियूनियन में उपजे वैनिला के लिए होता है मेक्सिकन वैनिला मूल किस्म वा. प्लानीफ़ोल्य द्वारा उत्पादित होता है जिसका उत्पादन काफी कम मात्रा में होता है तथा इसके मूल स्थान से इसका वैनिला के नाम से विपणन किया जाता है मेक्सिको के इर्द-गिर्द के पर्यटन बाजारों में बेचा जाने वाला वैनिला कभी-कभी वास्तविक वैनिला अर्क नहीं होता है बल्कि इसे टोंका फली के अर्क के साथ मिश्रित कर दिया जाता है जिसमें कोमैरिन मौजूद होता है टोंका फली के अर्क में सुगंध होती है और इसका स्वाद वैनिला जैसा ही होता है कोमैरिन से प्रयोगशाला के जानवरों के यकृत में खराबी पैदा होती देखी गई और इसलिए अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा भोजन में इसका प्रयोग वर्जित कर दिया है।
टैहिटियन वैनिला फ्रेंच पॉलिनेशिया के वा. ताहीतेन्सीस् की प्रजाति से उत्पन्न वैनिला का नाम है आनुवंशिक विश्लेषण दर्शाता है कि यह किस्म वा. प्लानीफ़ोल्या तथा वा. ओदोराता के बीच की कृषि योग्य संकर प्रजाति होती है इस किस्म को फ़्रांसीसी एडमिरल फ्रैंकोइस अल्फॉन्से हैमेलिन फिलिपिंस से फ्रेंच पॉलिनेशिया लेकर आया जहां इसे ग्वाटेमाला से मनीला गैलियन ट्रेड द्वारा ले जाया गया था वेस्ट इंडीज वैनिला वा. पोम्पोना प्रजाति से निर्मित होता है जिसे कैरेबियन मध्य तथा दक्षिण अमेरिका में उपजाया जाता है।
फ़्रेंच वैनिला वैनिला का कोई प्रकार नहीं है बल्कि इसका प्रयोग प्रायः उस व्यंजन निर्माण में किया जाता है जिसमें वैनिला की तेज खुशबू होती है तथा वैनिला के दाने मौजूद होते हैं यह नाम वैनिला फलियों क्रीम तथा अंडे की जर्दी वाली आइसक्रीम कस्टर्ड बेस बनाने की फ़्रांसीसी शैली से उत्पन्न हुआ है किसी भी पूर्व या वर्तमान की फ़्रासीसी अधीनता से उनके निर्यातों के लिए प्रसिद्ध वैनिला के किस्मों का अंतर्वेशन वास्तव में सुगंध का एक हिस्सा ही है यद्यपि प्रायः यह एक संयोग ही रहा वैकल्पिक रूप में फ़्रेंच वैनिला को वैनिला कस्टर्ड स्वाद के संकेत के रूप में लिया जाता है फ़्रेंच वैनिला के नाम वाली शर्बत में वैनिला के अलावा पहाड़ी बादाम कस्टर्ड दग्धशर्करा या बटरस्कॉच का स्वाद रहता है।
वैनिला रसायनिक संरचना :-
यद्यपि वैनिला के अर्क में कई प्रकार के यौगिक उपस्थित रहते हैं पर वैनिलिन नामक यौगिक प्रमुख रूप से इसके विशेष स्वाद तथा सुगंध के लिए उत्तरदायी होता है वैनिला के मूल तेल में अन्य सूक्ष्म यौगिक होता है हेलिओट्रोपिन पाइपेरोनल तथा अन्य पदार्थ प्राकृतिक वैनिला के गंध को प्रभावित करते हैं वैनिला की फली से वैनिलिन को सर्वप्रथम सन् १८५८ में गॉब्ले द्वारा अलग किया गया था सन् १८७४ तक इसे पाइन वृक्ष के रस के ग्लूकोसाइड से प्राप्त किया जाने लगा जिससे अस्थायी रूप से प्राकृतिक वैनिला उद्योग में एक मंदी सी आ गई थी।
वैनिला के सत्त्व दो रूपों में आते हैं इसकी असली फली के अर्क में सैकड़ों प्रकार के भिन्न यौगिकों का अत्यंत जटिल मिश्रण समाहित होता है कृत्रिम सत्त्व में मूल रूप से इथेनॉल में कृत्रिम वैनिलिन का घोल समाहित होता है जो फेनॉल से व्युत्पन्न होता है तथा यह अत्यंत शुद्ध होता है।
सामान्य दिशा-निर्देश :-
सामान्यतः अच्छे प्रकार का वैनिला केवल अच्छी लताओं से ही निकलता है इस प्रकार की उच्च गुणवत्ता की प्राप्ति के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है वैनिला का व्यावसायिक उत्पादन खुले खेत तथा ग्रीनहाउस प्रक्रिया के अंतर्गत किया जा सकता है दोनों ही उत्पादन प्रणाली में निम्नलिखित समानताएं होती हैं :-
- प्रथम दानों के उत्पादन से पूर्व पौधे की ऊंचाई तथा उसमें लगे वर्ष |
- छाया की आवश्यकता |
- जैविक पदार्थों की मात्रा की आवश्यकता |
- वृद्धि के लिए वृक्ष या सांचे की आवश्यकता |
- परागण तथा कटाई के कार्यों में |
वैनिला का सर्वोत्तम उत्पादन गर्म आर्द्र जलवायु में समुद्र तल से १५०० मी. की ऊंचाई पर होता है इसका अधिकतर उत्पादन भूमध्य रेखा के १० से २० डिग्री ऊपर तथा नीचे होता है उत्पादन के आदर्श दशा वर्ष के १० महीनों तक समान रूप से वितरित १५० से ३०० से.मी. की मध्यम वर्षा होती है इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान रात का १५ से ३० डिग्री तथा दिन का १५ से २० डिग्री होता है आदर्श नमी लगभग ८०% है और सामान्य ग्रीनहाउस स्थितियों में यह वाष्पन शीतक द्वारा प्राप्त किया जाता है चूंकि ग्रीनहाउस वैनिला को भूमध्य-रेखा के निकट के क्षेत्रों में तथा पॉलिमर के नीचे उपजाया जाता है इसलिए यह आर्द्रता वातावरण द्वारा प्राप्त हो जाती है।
वैनिला की खेती के लिए मिट्टी हल्की होनी चाहिए जिसमें अत्यधिक कार्बनिक पदार्थ हो और दोमट मिट्टी जैसा रंग हो इन्हें अच्छी तरह जोता और सुखाया गया हो और इस परिस्थिति में थोडा ढालू होना मददगार साबित होता है मिट्टी का पीएच मान अच्छी तरह दर्ज नहीं किया गया है लेकिन कुछ शोधकर्ताओं ने मिट्टी का एक आदर्श पीएच मान तकरीबन ५.३ निर्देशित किया है मल्च लता के समुचित विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और मल्च की एक समुचित मात्रा लता के आधार में डाली जानी चाहिए फ़र्टिलाइजेशन में मिट्टी की परिस्थितियों के अनुसार अंतर होता है लेकिन सामान्य सुझाव हैं कार्बनिक खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट आयल केक पाल्ट्री खाद और लकड़ी की राख के अतिरिक्त नाइट्रोजन की ४० से ६० ग्राम मात्रा फ़ास्फ़ोरस पेंटाआक्साइड की २० से ३० ग्राम की मात्रा और पोटैशियम आक्साइड की ६० से १०० ग्राम की मात्रा प्रति वर्ष प्रत्येक पौधे पर इस्तेमाल की जानी चाहिए वैनिला के लिए फ़ोलियर एप्लीकेशन भी बेहतर है और १% NPK के घोल का छिड्काव पौधों पर महीने में एक बार किया जाना चाहिए वैनिला को काफ़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ पसंद है इसीलिए मल्च का प्रति वर्ष ३ से ४ बार इस्तेमाल पौधे के लिए पर्याप्त है।
वैनिला का फ़ैलाव तनों की कटाई द्वारा या टिशू कल्चर द्वारा प्राप्त किया जा सकता है तनों की कटाई के लिए एक संतति बाग तैयार करने की आवश्यकता है इस बाग को तैयार करने के लिए दिए गये सुझावों में अंतर मतभेद है लेकिन आम तौर पर ६० सेंटीमीटर चौडी ४५ सेंटीमीटर गहरी और ६० सेंटीमीटर जगह वाली नालियाँ प्रत्येक पौधे के लिए आवश्यक हैं सभी पौधों को बाकी फ़सल के साथ-साथ ५०% छाया में बढना और उगाया जाना चाहिए नारियल के रेशों से नालियों की मल्चिंग और सुक्ष्म सिंचाई वानस्पतिक विकास के लिए आदर्श वातावरण और मौसम तैयार करता है खेतों या ग्रीनहाउस में पौधे उगाने के लिए ६० और १२० सेंटीमीटर के बीच की कलमों को चुना जाना चाहिए ६० सेंटीमीटर से नीचे की कलमों को एक अलग नर्सरी में लगाया और उगाया जाना चाहिए पौधा रोपन संबंधी सामग्रियाँ हमेशा लता के पुष्परहित हिस्सों से ली जानी चाहिए पौधा रोपन से पहले कलमों को शिथिल करना जडों के विकास और विस्तार के लिए बेहतर परिस्थितियाँ प्रदान करता है।
कलमों की रोपाई से पूर्व उन पेड़ो को जो बेल या लता को सहारा देंगे कलमों को बोने से कम से कम तीन माह पूर्व अवश्य रोप देना चाहिए पेड़ से ३० से.मी. दूर ३०*३०*३० से.मी. आकार के गढ्ढे खोदे जाते हैं और उनको गोबर की खाद एफवाईएम अथवा वर्मीकम्पोस्ट रेत तथा ऊपरी मिट्टी को अच्छी तरह मिलाकर भरा जाता है प्रति हेक्टेयर २००० कलमों की औसत से रोपाई की जा सकती है एक महत्वपूर्ण ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कलमों की रोपाई के समय नीचे की पत्तियों की छंटाई करनी चाहिए और छंटाई किए गए सबसे नीचे के हिस्से को मिट्टी में इस प्रकार गाड़ना चाहिए कि चार पत्तियाँ मिट्टी में एकदम नजदीक रहे तथा उन्हें १५ से २० से.मी. की गहराई में गाड़ा जाए कलम का ऊपरी हिस्सा केले अथवा सन जैसे प्राकृतिक रेशे का प्रयोग करके पेड़ से बाँधा जाता है।
उत्तक संवर्धन :-
वैनीला उत्तक संवर्धन के लिए अनेक विधियाँ दी गयी हैं लेकिन वे सब वैनीला लता या बेल की कक्षवर्ती कली से शुरू होती हैं बेल की खेती को कठोर ढेर प्रोटोकोरन्स जड़ के अगले भाग तथा तने की ग्रंथियों के माध्यम से भी बढ़ाया जा सकता है उक्त प्रक्रियाओं का कोई भी विवरण नीचे दिए गए संदर्भों से भी प्राप्त किया जा सकता है लेकिन वे सब नए वैनीला पौधों के उत्पन्न करने में कामयाब हैं जिन्हें खेतों अथवा ग्रीनहाउस में रोपने से पूर्व उनकी कम से कम ३० से.मी. की लम्बाई होनी चाहिए।
समय-सारणी का महत्व :-
उष्णकटिबंध में वैनीला पौधों को लगाने का उचित समय सितंबर से नवंबर माह होता है जब मौसम न ज्यादा बरसात वाला और ना ही ज्यादा शुष्क होता है लेकिन यह सिफारिश पौधों के उगने की स्थिति पर भिन्न होती है कलमों को जड़ पकड़ने में १ से ८ सप्ताह लगते हैं और शुरूआत में ऊपर की ओर एक पत्ती निकलती हुई दिखायी देती है रोपाई के तुरंत बाद जैव खाद की अतिरिक्त खुराक के रूप में पत्तियों व घासफूंस की एक मोटी सतह से उन्हें ढंकना चाहिए फूल और बाद में फली उत्पन्न करने के लिये कलमों के पर्याप्त रूप से बढ़ने हेतु तीन वर्ष आवश्यक हैं अधिकांश ऑर्किडों के समान ही मुख्य लता से शाखा के रूप में निकलती हुई कलियाँ तने के साथ बढ़ती हैं ६ से १० इंच के तने के साथ बढ़ते हुए कली क्रम से प्रत्येक भिन्न समयांतराल में खिलते हैं और परिपक्व होते हैं।
परागण :-
सामान्य रूप से पुष्पण प्रत्येक बसंत में होता है और परागण के बिना कली मुरझा जाती है और नीचे गिर जाती है और वैनिला की कोई भी फली विकसित नहीं हो सकती है खिलने के १२ घंटे के भीतर प्रत्येक पुष्प का हाथ से परागण करना चाहिये कली परागण करने में सक्षम एक मात्र कीट मेलीपोना एक मधुमक्खी है जो केवल मेक्सिको मूल का है आज उगाये जाने वाले सभी वैनिला का हाथ से परागण किया जाता है रोस्टेलम को उठाने या फ्लैप को ऊपर की ओर हिलाने के लिये लकड़ी के एक छोटे टुकड़े या घास के तने का उपयोग किया जाता है जिससे कि लटके हुये पराग कोष को वर्तिकाग्र के विरुद्ध दबाया जा सके और यह लता का स्व-परागण कर सके सामान्य रूप से पुष्प के प्रत्येक गुच्छे में से एक पुष्प प्रतिदिन खिलता है और इसलिये पुष्प का गुच्छा २० दिनों से अधिक समय तक पुष्पण में रह सकता है एक स्वस्थ लता को प्रति वर्ष ५० से १०० फलियां उत्पन्न करनी चाहिए हालांकि उगाने वाले व्यक्ति पुष्प के प्रत्येक गुच्छे में २० में से केवल ५ से ६ पुष्पों को परागित करने के लिए सावधान रहते हैं प्रति लता खिलने वाले प्रथम ५ से ६ पुष्पों का परागण किया जाना चाहिए ताकि फली की आयु समान रहे कृषि विज्ञान संबंधी ये प्रणालियाँ पैदावार को सहज करती हैं और फली की गुणवत्ता में वृद्धि करती हैं फलों को विकसित होने में ५ से ६ सप्ताह लगते हैं लेकिन फली को परिपक्व होने में लगभग ९ महीने लगते हैं अति परागण के परिणामस्वरूप फली की गुणवत्ता रोग ग्रस्त और निम्न हो सकती है एक लता १२ से १४ महीनों के बीच उत्पादक बनी रहती है।
विनाशकारी कीट और रोग प्रबन्धन :-
अधिकांश रोग वैनिला के उगाने की असामान्य स्थितियों से उत्पन्न होते हैं इसलिए जल की अधिकता अपर्याप्त जल निकास भारी मल्च अति परागण और अत्यधिक छाँव रोग के विकास में सहायता करते हैं वैनिला कई प्रकार के कवक तथा विषाणु रोगों के प्रति संवेदनशील होता है फ्युजेरियम स्पीशीज स्क्लेरोटियम स्पीशीज फाइटोप्थोरा स्पीशीज तथा कॉलेक्ट्रोट्रिकम स्पीशीज जड़ तना पत्ते फली तथा प्ररोह के शिखाग्र में सड़न उत्पन्न करते हैं बोरडॉक्स मिश्रण (१%) बैविस्टिन (०.२%) तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (०.२%) के छिड़काव द्वारा इन रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है।
मिट्टी में ट्राइकोडर्मा तथा पर्णीय स्यूडोमोनास (०.२%) डालकर ऐसे रोगों का जैविक नियंत्रण किया जा सकता है मोजैक लीफ कर्ल तथा सिम्बीडियम मोजैक पॉटेक्स वायरस इसके सामान्य विषाणु रोग हैं ये रोग रस द्वारा संचरित होते हैं परिणामस्वरूप प्रभावी पौधा नष्ट हो जाता है वैनिला के नाशक कीटों में भृंग तथा घुन शामिल हैं जो फूल पर आक्रमण करते हैं कैटरपिलर सांप तथा घोंघा इसके प्ररोह के कोमल हिस्सों कलियों तथा अपरिपक्व फलियों को नुकसान पहुंचाते हैं जबकि टिड्डे प्ररोह के शिखाग्र को काटकर इसे प्रभावित करते हैं यदि जैव कृषि को व्यवहार में लाया जाए कीटनाशी के प्रयोग से बचा जाए तथा कीटनाशन के लिए यांत्रिक उपाय अपनाए जाएं इनमें से अधिकतर कार्य ग्रीनहाउस कृषि के अंतर्गत किए जाते हैं क्योंकि खेतों में ऐसी परिस्थितियां प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता है।
वैनिला की अनुकृति :-
वैनिला की अधिकतर अनुकृति में वैनिलिन उपस्थित रहता है जो असली वैनिला फलियों के १७१ पहचाने गए सुगंधित यौगिकों में केवल एक होता है कृत्रिम रूप से वैनिलिन लिग्निन से निर्मित किया जा सकता है अधिकतर कृत्रिम वैनिलिन गूदे तथा कागज उद्योग का एक उप उत्पाद होता है और यह अपशिष्ट सल्फेट से निर्मित होता है जिसमें लिग्निन सल्फोनिक अम्ल उपस्थित होता है।
उत्पादन के चरण :-
फ़सल कटाई :-
लता पर वैनिला की फली तेजी से वृद्धि करती है पर परिपक्व होने तक यह कटाई के लिए तैयार नहीं होती जिसमें लगभग दस महीने लग जाते हैं वैनिला की फलियों की कटाई में अत्यधिक श्रम लगता है क्योंकि इसमें फूल का परागण करना पड़ता है अपरिपक्व गहरी हरी फलियां नहीं तोड़ी जातीं फलियों के दूरस्थ सिरे पर हल्का पीलापन का आना फलियों की परिपक्वता का संकेत होता है प्रत्येक फली अपने समय पर ही परिपक्व होती है इसलिए उन्हें प्रतिदिन तोड़ने की आवश्यकता होती है प्रत्येक फली से बेहतर खुशबू प्राप्त करने के लिए हरेक फली को हाथ से तोड़ा जाना चाहिए क्योंकि यह एक सिरे पर फटने लगती है अधिक परिपक्व फलियों के फटने की संभावना होती है जिससे इसके बाजार मूल्य में कमी हो जाती है इसकी व्यावसायिक कीमत फली की लंबाई के आधार पर तय की जाती है यदि फलियां १५ से.मी. से अधिक होती हैं तो इन्हें अव्वल गुणवत्ता का उत्पाद माना जाता है यदि फलियों की लंबाई १० से १५ से.मी. के बीच होती है तो उन्हें द्वितीय गुणवत्ता के अंतर्गत रखा जाता है और यदि उनकी लंबाई १० से.मी. से कम होती है तो उन्हें तृतीय गुणवत्ता के अंतर्गत रखा जाता है प्रत्येक फली में पर्याप्त मात्रा में बीज होते हैं जो एक गहरे लाल रंग के द्रव से लिपटे होते हैं जिससे वैनिला का सत्त्व निकाला जाता है वैनिला की फली की उपज फलदार लता को लटकाने के लिए की गई देखभाल और प्रबंधन पर निर्भर करती है वायवीय जड़ के निर्माण को उत्प्रेरित करने हेतु किए गए किसी भी कार्य का लता की उत्पादकता पर सीधा असर पड़ता है पांच साल की एक लता १.५ और ३ किग्रा के बीच फलियों का उत्पादन कर सकती है और यह उत्पादन कुछ सालों के बाद ६ किग्रा तक पहुंच सकता है कटाई की गई हरी फलियों को बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त करने के लिए व्यावसायीकरण किया जाता है या उनकी पकाई की जा सकती है।
पकाई :-
बाजार में वैनिला की पकाई के लिए कई विधियां प्रचलन में हैं तथापि उन सभी के चार चरण होते हैं हनन प्रस्वेदन धीमा शुष्कन तथा फलियों की कंडिशनिंग |
हनन :-
वैनिला फली के कायिक ऊतक की अगली वृद्धि को रोकने के लिए उसे मृत कर दिया जाता है मृत करने की विधि भिन्न-भिन्न होती हैं पर इनमें सूर्य द्वारा हनन चूल्हे द्वारा हनन गर्म जल हनन छीलन द्वारा हनन या शीतलन द्वारा हनन शामिल हो सकते हैं गर्म जल हनन में फलियों को गर्म जल में तीन मिनट के लिए डुबोया जाता है ताकि फलियों की कायिक वृद्धि रुक जाए और सुगंध के लिए उत्तरदायी एंजाइमों की अभिक्रियाएं आरंभ हो जाए |
प्रस्वेदन :-
इस विधि में फलियों को ऊनी कपड़े में लपेटकर धूप में एक घंटे तक छोड़ कर उनके तापमान को बढ़ाया जाता है जो १० दिनों तक किया जाता है शेष समय के दौरान फलियों को वायुरुद्ध लकड़ी के बक्से में रखा जाता है इन स्थितियों में एंजाइमों में अभिक्रियाएं अभिप्रेरित होती हैं जिसके फलस्वरूप वैनिला में विशेष रंग स्वाद तथा खुशबू उत्पन्न होती है।
शुष्कन :-
सड़न को रोकने तथा फलियों में खुशबू को बनाए रखने के लिए फलियों को सुखाया जाता है प्रायः फलियों को सुबह के दौरान धूप में छोड़ा जाता है और दोपहर में बक्से में रख दिया जाता है जब फलियों के भार के २५ से ३०% में नमी होती है इसके विपरीत शुष्कन की शुरुआत में ६० से ७०% नमी होती है तो उनकी पकाई की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और उनमें अधिकतम सुगंधित गुणवत्ता आ जाती है नमी की मात्रा में कमी करने की यह प्रक्रिया तीन से चार हफ्ते तक फलियों को एक कमरे में लकड़ी की ताख पर फैलाकर पूरी की जाती है।
फली की कंडिशनिंग :-
इस चरण में फलियों को कुछ महीने तक बंद बक्सों में रखा जाता है जहां सुगंध विकसित होती है प्रसंष्कृत फलियों को छांटा जाता है ग्रेडिंग की जाती है बंडल बनाए जाते हैं तथा उन्हें पैराफिन कागज में लपेट दिया जाता है और फली की वांछित गुणवत्ता के विकास के लिए विशेष कर स्वाद तथा खुशबू के लिए उन्हें संरक्षित कर लिया जाता है पकी हुई वैनिला फलियों में औसतन २.५% वैनिलिन होता है पूर्ण रूप से पकाए जाने के बाद वैनिला को गुणवत्ता के आधार पर छांट लिया जाता है और उसकी ग्रेडिंग कर ली जाती है।
रसोई के उपयोग :-
भोजन में वैनिला का स्वाद लाने के लिए उसमें वैनिला का अर्क मिलाया जाता है या तरल व्यंजन में वैनिला की फली को पकाया जाता है यदि फली दो हिस्सों में तोड़ दिया जाता है तो तेज खुशबू मिल सकती है क्योंकि फली के अधिक पृष्ठ-क्षेत्र तरल के संपर्क में आते हैं इस स्थिति में फली के बीजों को उस व्यंजन में मिलाया जाता है प्राकृतिक वैनिला व्यंजन के रंग को भूरा या पीला कर देता है जो उसकी सांद्रता पर निर्भर करता है अच्छी गुणवत्ता वाले वैनिला में तेज खुशबूदार स्वाद होता है पर निम्न गुणवत्ता या कृत्रिम वैनिला जैसी खुशबू की अल्प मात्रा वाले खाद्य पदार्थ सामान्य रूप से अधिक पाए जाते हैं क्योंकि असली वैनिला कहीं ज्यादा महंगा होता है।
वैनिला का एक मुख्य उपयोग आइसक्रीम में खुशबू पैदा करने में होता है आइसक्रीम का सबसे आम स्वाद है वैनिला और इसलिए अधिकतर लोग इसे स्वाभाविक स्वाद मानते हैं तुल्यता के आधार पर वैनिला शब्द को कभी-कभी प्लेन का पर्याय माना जाता है यद्यपि वैनिला अपने आप में स्वाद बढ़ाने वाला एक बहुमूल्य एजेंट होता है इसका प्रयोग अन्य पदार्थों के स्वाद को बढ़ाने में भी किया जाता है जिनके लिए इसका अपना स्वाद प्रायः एक पूरक जैसा होता है जैसे चॉकलेट कस्टर्ड दग्धशर्करा कॉफी तथा अन्य पदार्थ |
खाद्य उद्योग में मिथाइल तथा इथाइल वैनिलिन का प्रयोग किया जाता है इथाइल वैनिलिन अधिक महंगा होता है पर इसका अधिक महत्व है कुक्स इलस्ट्रेटेड ने बेक किए जाने वाले पदार्थों तथा अन्य प्रयोगों में वैनिलिन की जगह वैनिला का इस्तेमाल कर अनेक स्वाद परीक्षण करवाए और पत्रिका के सम्पादक को इस बात से बड़ी हैरानी हुई कि स्वाद परीक्षकों द्वारा वैनिला और वैनिलिन के स्वाद में कोई फर्क नहीं पाया जा सका हालांकि वैनिला आइसक्रीम के मामले में वैनिला की ही जीत हुई।
औषधीय उपयोग :-
प्राचीन चिकित्सकीय साहित्यों में वैनिला को एक कामोत्तेजक तथा बुखार के उपचार के रूप में वर्णित किया गया है हालांकि दावों वाले इन प्रयोगों को कभी वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया जा सका बल्कि यह देखा गया कि वैनिला कैटेकोलामाइन जिसे आम तौर पर एड्रीनेलिन कहते हैं के स्तर को बढ़ाता है और इसलिए इसे हल्का नशीला माना जाता है।
एक प्रयोगशाला जांच में वैनिला को जीवाणुओं में निर्दिष्ट संख्या के अनुभव को बाधित करने में सक्षम पाया गया यह चिकित्सकीय रूप से दिलचस्प है क्योंकि कई जीवाणुओं में निर्दिष्ट संख्या अनुभव करने के संकेत से उनमें उग्रता आती रोगाणु केवल तभी उग्र होते हैं जब संकेत द्वारा उन्हें यह पता चलता है कि होस्ट जीव की रोग प्रतिरोधी प्रणाली द्वारा दी जाने वाली प्रतिक्रिया के विरोध के खिलाफ उनकी पर्याप्त संख्या है।
वसाबी के फायदे
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