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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
को
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कपूर के फायदे
कपूर उड़नशील वानस्पतिक द्रव्य है, यह सफेद रंग का मोम की तरह का पदार्थ है, इसमे एक तीखी गंध होती है, कपूर को संस्कृत में कर्पूर, फारसी में काफ़ूर और अंग्रेजी में कैंफ़र कहते हैं, कपूर उत्तम वातहर, दीपक और पूतिहर होता है, त्वचा और फुफ्फुस के द्वारा उत्सर्जित होने के कारण यह स्वेदजनक और कफघ्न होता है, न्यूनाधिक मात्रा में इसकी क्रिया भिन्न-भिन्न होती है, साधारण औषधीय मात्रा में इससे प्रारंभ में सर्वाधिक उत्तेजन, विशेषत: हृदय, श्वसन तथा मस्तिष्क में होता है, पीछे उसके अवसादन, वेदनास्थापन और संकोच-विकास-प्रतिबंधक गुण देखने में आते हैं, अधिक मात्रा में यह दाहजनक और मादक विष हो जाता है।
कपूर के फायदे |
कपूर के प्रकार :-
कपूर तीन विभिन्न वर्गों की वनस्पति से प्राप्त होता है, इसीलिए यह तीन प्रकार का होता है :-
- चीनी अथवा जापानी कपूर |
- भीमसेनी अथवा बरास कपूर |
- हिंदुस्तानी अथवा पत्रीकपूर |
उपर्युक्त तीनों प्रकार के कपूर के अतिरिक्त आजकल संश्लिष्ट कपूर भी तैयार किया जाता है।
जापानी कपूर :-
यह एक वृक्ष से प्राप्त किया जाता है, जिसे सिनामोमस कैफ़ोरा कहते हैं, यह लॉरेसी कुल का सदस्य है, यह वृक्ष चीन, जापान तथा फ़ारमोसा में पाया जाता है, परंतु कपूर के उत्पादन के लिए अथवा बागों की शोभा के लिए अन्य देशों में भी उगाया जाता है, भारत में यह देहरादून, सहारनपुर, नीलगिरि तथा मैसूर आदि में पैदा किया जाता है, भारतीय कर्पूर वृक्ष छोटे, उनकी पत्तियाँ ढाई से ४ इंच लंबी, आधार से कुछ ऊपर तीन मुख्य शिराओं से युक्त, आधारपृष्ठ पर किंचित् श्वेताभ, लंबाग्र और मसलने पर कर्पूरतुल्य गंधवाली होती हैं, पुष्प श्वेताभ, सौरभयुक्त और सशाख मंजरियों में निकलते हैं।
जापानी कपूर जापान आदि में लगभग ५० वर्ष पुराने वृक्षों के काष्ठ आसवन से कपूर प्राप्त किया जाता है, किंतु भारत में यह पत्तियों से ही प्राप्त किया जाता है, कपूर के पौधों से बार-बार पत्तियाँ तोड़ी जाती हैं, इसलिए वे झाड़ियों के रूप में ही बने रहते हैं, इस जाति के कई भेद ऐसे भी हैं जो साधारण दृष्टि से देखने पर सर्वथा समान लगते हैं, परंतु इनमें कपूर से भिन्न केवल यूकालिप्टस आदि गंधवाले तेल होते हैं, जिनका आभास मसली हुई पत्तियों की गंध से मिल जाता है, कपूरयुक्त भेदों के सर्वांग में तेलयुक्त केशिकाएँ होती हैं, जिनमें पीले रंग का तेल उत्पन्न होता है, इससे धीरे-धीरे पृथक होकर कपूर जमा होता है।
भीमसेनी कपूर :-
जिस पौधे से यह प्राप्त होता है उसे ड्रायोबैलानॉप्स ऐरोमैटिका कहते हैं, यह डिप्टरोकार्पेसिई कुल का सदस्य है, जो सुमात्रा तथा बोर्निओ आदि में स्वत: उत्पन्न होता है, इस वृक्ष के काष्ठ में जहाँ पाले होते हैं अथवा चीरे पड़े रहते हैं वहीं कपूर पाया जाता है, यह श्वेत एवं अर्धपारदर्शक टुकड़ों में विद्यमान रहता है और खुरचकर काष्ठ से निकाला जाता है, इसलिए इसे अपक्व और जापानी कपूर को पक्व कर्पूर कहा गया है, यह अनेक बातों में जापानी कपूर से सादृश्य रखता है और उसी के समान चिकित्सा तथा गंधी व्यवसाय में इसका उपयोग होता है, इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह पानी में डालने पर नीचे बैठ जाता है, आयुर्वेदीय चिकित्सा में यह अधिक गुणवान भी माना गया है, आजकल भीमसेनी कपूर के नाम पर बाजार में प्राय: कृत्रिम कपूर ही मिलता है, अत: जापानी कपूर का उपयोग ही श्रेयस्कर है।
पत्री कपूर :-
भारत में कंपोज़िटी कुल की कुकरौंधा प्रजातियों से प्राप्त किया जाता है, जो पर्णप्रधान शाक जाति की वनस्पतियाँ होती हैं।
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