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प्रस्तुतकर्ता
Dinesh Chandra
को
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अपामार्ग (चिचड़ी) के फायदे
अपामार्ग एक औषधीय वनस्पति है, इसका वैज्ञानिक नाम अचिरांथिस अस्पेरा है, हिन्दी में इसे चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा आदि नामों से जाना जाता है, इसे लहचिचरा भी कहा जाता है, अपामार्ग एक सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है, वर्षा के साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प फलों से शोभित होती है, ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में परिपक्व होकर फलों के साथ ही क्षुप भी शुष्क हो जाता है, इसके पुष्प हरी गुलाबी आभा युक्त तथा बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल कहते हैं, शरद ऋतु के अंत में पंचांग, मूल, तना, पत्र, पुष्प, बीज का संग्रह करके छाया में सुखाकर बन्द पात्रों में रखते हैं, बीज तथा मूल के पौधे के सूखने पर संग्रहीत करते हैं, इन्हें एक वर्ष तक प्रयुक्त किया जा सकता है।
अपामार्ग (चिचड़ी) के फायदे |
अपामार्ग का औषधीय गुण
इसे वज्र दन्ती भी कहते हैं, इसकी जड़ से दातून करने से दांतों की जड़ें मजबूत और दाँत मोती की तरह चमकते हैं, बिच्छू के काटने पर एक कटोरी में ५० ग्राम लाही के तेल को उबालो और उस उबलते हुए तेल में लटजीरा के पौधे को उखाड़ कर और उसका रस निचोड़ कर डालो इससे जो वाष्प निकले उसमें बिच्छू से कटे हुए भाग की सिकाई करो शीघ्र ही लाभ मिलेगा।
अपामार्ग या चिचड़ी एक ऐसा चमत्कारी पौधा है, जो हर जगह आसानी से पाया जाता है, चिचड़ी को आयुर्वेद में अपामार्ग के नाम से जाना जाता है, पहचान की दृष्टि से देखा जाए तो इसके पत्ते कुछ गोल व खुरदुरे होते है, इसके तने व टहनियाँ गाँठ युक्त होते है, साथ ही इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है, कि इसके फूल छोटे-छोटे कांटेदार होते है, जिसके निकट जाने से यह कपड़ो पर चिपक जाता है, यह जंगली वनस्पति कई रोगों जैसे- बवासीर, फोड़े-फुंसी, पायरिया, दमा, मधुमेह, विषैले जंतु दंश, पेट दर्द इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है, भिन्न-भिन्न रोगों में इसे भिन्न-भिन्न प्रकार से लिया जाता है, जैसे- किसी भी प्रकार के फोड़े-फुंसी पर चिचड़ी की पत्ती पीसकर उसमें सरसों का तेल मिलाकर गर्म करके लगाने से फोड़े-फुंसी या तो बैठ जाते है या पक कर फूट जाते हैं, चिचड़ी या अपामार्ग की जड़ की दातुन दांतों के हर प्रकार के रोगों में चमत्कारी प्रभाव दिखाता है, बवासीर रोग में चिचड़ी के सात-आठ पत्ते, उतने ही काली मिर्च के दाने को पीसकर दिन में एकबार एक कप पानी में डालकर पीने से बवासीर का खून निकलना बंद हो जाता है, सुगर रोग में इसके पत्ते का रस नियमित सेवन करना श्रेयष्कर होता है, विषैले जंतुओं के काटने पर चिचड़ी के पत्ते व जड़ का रस पिलाने व काटे हुए स्थान पर लगाने से विष का प्रभाव समाप्त होने लगता है, इसी प्रकार चिचड़ी के विभिन्न प्रकार से प्रयोग से पेट का दर्द, दमा, अफारा, खांसी इत्यादि में भी अपना लाभकारी प्रभाव दिखाते हैं, वनौषधियों के साथ-साथ अगर आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का भी प्रयोग किया जाए तो लाभकारी प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है |
अपामार्ग का अन्य भाषाओं में नाम :-
- संस्कृत-अपामार्ग
- मराठी-अघाडा
- बंगाली-आपांग
- गुजराती-अघेडो
- मलयालम-कडालाडी
- तमिल-नायरु
- तेलुगु-उत्तरेनिवि दुच्चीणिके
- अंग्रेजी- रफ़ चाफ ट्री
- लैटिन-Achyranthis Aspera
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