गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

बिले (बिल्व, बेल या बेलपत्थर) के फायदे

बिले (बिल्व, बेल या बेलपत्थर) के फायदे 

बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है, इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है, इसके अन्य नाम हैं- शाण्डिल्रू, श्री फल, सदाफल इत्यादि, इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी, बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में ४००० फीट की ऊँचाई तक पाए जाते हैं, मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला हुआ पाया जाता है, इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं, इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।

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Bile Ka Ped

धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है, हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है, मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं, परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है, धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है, इसके वृक्ष १५ से ३० फीट ऊँचे कँटीले एवं मौसम में फलों से लदे रहते हैं, इसके पत्ते संयुक्त विपत्रक व गंध युक्त होते हैं तथा स्वाद में तीखे होते हैं, गर्मियों में पत्ते गिर जाते हैं तथा मई में नए पुष्प आ जाते हैं, फल मार्च से मई के बीच आ जाते हैं, बेल के फूल हरी आभा लिए सफेद रंग के होते हैं व इनकी सुगंध भीनी व मनभावनी होती है।

बिले का परिचय

बेल का फल ५ से १७ सें.मी. व्यास के होते हैं, इनका हल्के हरे रंग का खोल कड़ा व चिकना होता है, पकने पर हरे से सुनहरे पीले रंग का हो जाता है, जिसे तोड़ने पर मीठा रेशेदार सुगंधित गूदा निकलता है, इस गूदे में छोटे, बड़े कई बीज होते हैं, बाजार में दो प्रकार के बेल मिलते हैं- छोटे जंगली और बड़े उगाए हुए, दोनों के गुण समान हैं, जंगलों में फल छोटा व काँटे अधिक तथा उगाए गए फलों में फल बड़ा व काँटे कम होते हैं, बेल का फल अलग से पहचान में आ जाता है, इसकी अनुप्रस्थ काट करने पर यह १० से १५ खण्डों में विभक्त सा लगता है, जिनमें प्रत्येक में ६ से १० बीज होते हैं, ये सभी बीज सफेद लुआव से परस्पर जुड़े होते हैं, प्रायः सर्वसुलभ होने से इसमें मिलावट कम होती है, कभी-कभी इसमें गार्मीनिया मेंगोस्टना तथा कैथ के फल मिला दिए जाते हैं, परन्तु इसे काट कर इसकी परीक्षा की जा सकती है, इनकी वीर्य कालावधि लगभग एक वर्ष है।

आचार्य चरक और सुश्रुत दोनों ने ही बेल को उत्तम संग्राही बताया है, फल वात शामक मानते हुए इसे ग्राही गुण के कारण पाचन संस्थान के लिए समर्थ औषधि माना गया है, आयुर्वेद के अनेक औषधीय गुणों एवं योगों में बेल का महत्त्व बताया गया है, परन्तु एकाकी बिल्व, चूर्ण, मूलत्वक्, पत्र स्वरस भी अत्यधिक लाभदायक है। चक्रदत्त बेल को पुरानी पेचिश, दस्तों और बवासीर में बहुत अधिक लाभकारी मानते हैं, बंगसेन एवं भाव प्रकाश ने भी इसे आँतों के रोगों में लाभकारी पाया है, इससे आँतों की कार्य क्षमता बढ़ती है, भूख सुधरती है एवं इन्द्रियों को बल मिलता है।

बेल फल का गूदा डिटर्जेंट का काम करता है, जो कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जा सकता है, यह चूने के प्लास्टर के साथ मिलाया जाता है, जो कि जल अवरोधक का काम करता है और मकान की दीवारो सीमेंट में जोड़ा जाता है, चित्रकार अपने जलरंग मे बेल को मिलाते है, जो कि चित्रों पर एक सुरक्षात्मक परत लगाता है।

रासायनिक संगठन

बेल के फल की मज्जा में मूलतः ग्राही पदार्थ पाए जाते हैं, ये हैं- म्युसिलेज पेक्टिन, शर्करा, टैनिन्स, इसमें मूत्र रेचक संघटक हैं- मार्मेलोसिन नामक एक रसायन जो स्वल्प मात्रा में ही विरेचक है। इसके अतिरिक्त बीजों में पाया जाने वाला एक हल्के पीले रंग की तीखा तेल लगभग १२ प्रतिशत भी रेचक होता है, शक्कर ४.३ प्रतिशत, उड़नशील तेल तथा तिक्त सत्व के अतिरिक्त २ प्रतिशत भस्म भी होती है, भस्म में कई प्रकार के आवश्यक लवण होते हैं, बिल्व पत्र में एक हरा-पीला तेल, इगेलिन, इगेलिनिन नामक एल्केलाइड भी पाए गए हैं, कई विशिष्ट एल्केलाइड यौगिक व खनिज लवण त्वक् में होते हैं।

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