गवेधुका के फायदे | gavedhuka ke fayde

कालमेघ के फायदे

कालमेघ के फायदे 

कालमेघ एक बहुवर्षीय शाक जातीय औषधीय पौधा है, इसका वैज्ञानिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है, कालमेघ की पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है, जिसका औषधीय महत्व है, यह पौधा भारत एवं श्रीलंका का मूल निवासी है तथा दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है, इसका तना सीधा होता है, जिसमें चार शाखाएँ निकलती हैं और प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं, इस पौधे की पत्तियाँ हरी एवं साधारण होती हैं, इसके फूल का रंग गुलाबी होता है, इसके पौधे को बीज द्वारा तैयार किया जाता है, जिसको मई-जून में नर्सरी डालकर या खेत में छिड़ककर तैयार करते हैं, यह पौधा छोटे कद वाला शाकीय छायायुक्त स्थानों पर अधिक होता है, पौधे की छँटाई फूल आने की अवस्था अगस्त-नवम्बर में की जाती है, बीज के लिए फरवरी-मार्च में पौधों की कटाई करते है, पौधों को काटकर तथा सुखाकर बिक्री की जाती है, औसतन ३०० से ४०० की शाकीय हरा भाग प्रति हेक्टेयर मिल जाती है।

कालमेघ का औषधीय गुण

भारतीय चिकित्सा पद्वति में कालमेघ एक दिव्य गुणकारी औषधीय पौधा है, जिसको हरा चिरायता, देशी चिरायता, बेलवेन, किरयित् के नामों से भी जाना जाता है, भारत में यह पौधा पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश में अधिक पाया जाता है, इसका स्वाद कड़वा होता है, जिसमें एक प्रकार क्षारीय तत्व एन्ड्रोग्राफोलाइडस, कालमेघिन पाई जाती है, जिसके पत्तियों का उपयोग ज्वर नाशक, जांडिस, पेचिस, सिरदर्द कृमिनाशक, रक्तशोधक, विषनाशक तथा अन्य पेट की बीमारियों में बहुत ही लाभकारी पाया गया है, कालमेघ का उपयोग मलेरिया, ब्रोंकाइटिस रोगो में किया जाता है, इसका उपयोग यकृत सम्बन्धी रोगों को दूर करने में होता है, इसकी जड़ का उपयोग भूख लगने वाली औषधि के रूप में भी होता है, कालमेघ का उपयोग पेट में गैस, अपच, पेट में केचुएँ आदि को दूर करता है, इसका रस पित्तनाशक है, यह रक्तविकार सम्बन्धी रोगों के उपचार में भी लाभदायक है, सरसों के तेल में मिलाकार एक प्रकार का मलहम तैयार किया जाता है, जो चर्म रोग जैसे दाद, खुजली इत्यादि दूर करने में बहुत उपयोगी होता है, चिली में किए गए एक प्रयोग में यह पाया गया कि सर्दी के कारण बहते नाक वाले रोगी को १२०० मिलीग्राम कालमेघ का रस दिए जाने पर उसकी सर्दी ठीक हो गई, इंडियन ड्रग इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है, कि कालमेघ में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पाई जाती है और यह मलेरिया और अन्य प्रकार के बुखार के लिए भी रामबाण दवा है, इसके नियमित सेवन से रक्त शुद्ध होता है तथा पेट की बीमारियां नहीं होतीं, यह लीवर यानी यकृत के लिए एक तरह से शक्तिवर्धक का कार्य करता है, इसका सेवन करने से एसिडिटी, वात रोग और चर्मरोग नहीं होते।

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